दुर्ग (छत्तीसगढ़)। ट्विन सिटी के बहुप्रतिक्षित अभिषेक मिश्रा हत्याकांड पर बुधवार को अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। कोरोना संक्रमण के चलते फैसला विडियों कान्फ्रेसिंग के जरिए सुनाया गया। मामले के तीन में से दो अभियुक्तों को हत्या के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचने (120 बी), हत्या करने (302) और हत्या के बाद साक्ष्य को छुपाने (201) का दोषी पाया है। इस मामले में दोनों आरोपियों को जिंदगी भर के कारावास की सजा से दंडि़त किए जाने का फैसला जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव की अदालत में आज सुनाया गया। प्रकरण पर अभियोजन पक्ष की और से विशेष लोक लोक अभियोजक सुरेश प्रसाद शर्मा ने पैरवी की थी। वहीं फैसले के दौरान विशेष लोक अभियोजक बालमुकुंद चद्राकर उपस्थित रहे। वहीं आरोपी विकास जैन, अजीत सिंह की ओर से अधिवक्ता बीपी सिंह तथा किम्सी की तरफ से अधिवक्ता उमा भारती उपस्थित थी। यह पहला अवसर है जबकि किसी अति गंभीर प्रकरण पर फैसला न्यायालय द्वारा विडियों कान्फ्रेसिंग के माध्यम से सुनाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे निर्देेश
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के अभियुक्तों की नवंबर-दिसंबर में जमानत याचिका खारिज करते हुए चार माह की अवधि में प्रकरण पर फैसला सुनाए जाने का निर्देश सत्र न्यायालय को दिया था।
कई बार टली फैसले की तारीख
प्रकरण पर चार न्यायाधीशों द्वारा विचारण किया गया। विचारण तत्कालीन जिला सत्र न्यायाधीश नीलम चंद सांखला के कार्यकाल में तेजी से प्रारंभ किया गया था। जिसके पश्चात तत्कालीन जिला सत्र न्यायाधीश आर.के. अग्रवाल, जीके मिश्रा द्वारा भी प्रकरण पर विचारण किया गया, लेकिन फैसला नहीं आ सका। न्यायाधीश जीके मिश्रा के कार्यकाल में तीन बार फैसले की तारीखें बढी। 24 दिसंबर 2019 को शासकीय व बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं की अंतिम जिरह के बाद 13 जनवरी 2020, 28 जनवरी 2020, 14 फरवरी 2020, 26 फरवरी 2020 को फैसले की तिथि निर्धारित की गई थी। जिनमें से तीन बार न्यायाधीश के अवकाश पर होने के कारण तथा एक बार अधिवक्ताओं की हड़ताल के कारण फैसला नहीं सुनाया जा सका। जिसके बाद 13 मार्च 2020 को न्यायाधीश ने प्रकरण के तीन अन्य गवाहों का परीक्षण व प्रतिपरीक्षा नहीं होने का हवाला देते हुए सुनवाई तिथि 7 अप्रैल 2020 निर्धारित की थी। जिसके बाद कोरोना संक्रमण के कारण अदालतों में अवकाश होने से सुनवाई प्रक्रिया बाधित रही। अंत में जिला सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव ने इस मामले की सुनवाई पूरी करते हुए आज फैसला सुनाया है।
यह था मामला
आपकों बता दें कि वर्ष 2015 की धनतेरस की शाम 9 नवंबर को गंगाजली एज्युकेशन सोसाइटी का डायरेक्टर अभिषेक मिश्रा शंकरा कालेज जाने के नाम से निकला था। जिसके बाद उसकी घर वापसी नहीं हुई थी। इसी दौरान अभिषेक के पिता आईपी मिश्रा को अज्ञात व्यक्ति ने फोन करके इस गुमशुदगी को नक्सलियोंं द्वारा अपहरण किए जाने का स्वरुप प्रदान करने का प्रयास किया था। अभियुक्तों ने मामले को नक्सली जामा पहनाने के लिए आईपी मिश्रा को फोन पर लाल सलाम बोला था, जिसके बाद 5 करोड़ रुपए फिरौती की मांग की गई थी। अपहरण और फिरौती की मांग किए जाने की शिकायत आईपी मिश्रा ने जेवरा सीरसा पुलिस चौकी में दर्ज कराई थी। मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण पुलिस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसी दौरान अभिषेक मिश्रा की कार रायपुर के व्हीआईपी रोड़ से बरामद की गई। जिसके बाद मोबाइल टावर लोकेशन के साथ हजारों काल्स डिटेल्स को खंगाला गया। जिसमें आखरी बार लापता अभिषेक की बात उसकी पूर्व कर्मी किम्सी कंबोज से होना पाया गया। संदेह के आधार पर किम्सी के पति विकास जैन व चाचा अजीत सिंह से पूछताछ की गई। जिसके बाद हत्या की इस जघन्य साजिश का खुलासा हुआ। विकास व अजीत की निशानदेही पर अभिषेक के शरीर का कंकाल गुमशुदगी के 44 दिन बाद स्मृति नगर स्थित एक घर के गार्डन में दफन मिला। जिसके बाद विकास जैन व अजीत सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इस दरम्यान किम्सी (कंबोज) जैन परीक्षा देने के बहाने दिल्ली चली गई थी। पुलिस किम्सी को दिल्ली से गिरफ्तार कर दुर्ग लाई थी।
ऐसे दिया था साजिश को अंजाम
पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने खुलासा किया था कि अभिषेक मिश्रा उसकी पूर्व कर्मी व विकास की पत्नी किम्सी ने नाजायज ताल्लुकात रखना चाहता था। जिससे वे परेशान थे, इसीके चलते उन्होंने साजिश रची और किम्सी से फोन करवा कर अभिषेक को चौहान टाउन स्थित उसके निवास में बुलाया गया। जहां अजीत सिंह और विकास ने उस पर हमला कर बेहोश कर दिया और कार की डिक्की में उसे रखकर स्मृति नगर के घर में ले गए, जहां अजीत सिंह किराए पर रहता था। यहां पहले से ही गड्डा खुदवा कर रखा गया था। जिसमें बेहोशी की हालत में ही अभिषेक को जिंदा बबल शीट में बांध कर दफन कर दिया था। शरीर को जल्दी गलाने के लिए नमक की बोरियां भी साथ में डाल दी गई थी। जिसके बाद रायपुर के समीप जाकर नए खरीदे गए सिम से आईपी मिश्रा को फोन कर फिरौती की मांग की गई। इसके अलावा पुलिस को गुमराह करने अभिषेक का मोबाइल चालू कर दुर्ग भिलाई रायपुर के विभिन्न मार्गो पर भी घूमते रहे। किसी को शक न हो इसलिए दफन किए गए स्थान व पर गोभी के पौधे भी रोप दिए थे।
अदालत ने दिया दोषी करार
इस मामले में पुलिस ने अभिषेक की पूर्व कर्मी किम्सी जैन कंबोज के साथ उसके पति विकास जैन व चाचा अजीत सिंह के खिलाफ दफा 302, 120 बी, 201 के तहत कार्रवाई कर प्रकरण को न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए पेश किया गया था। इस मामले में किम्सी (कंबोज) जैन को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया है। वहीं उसके पति विकास जैन व चाचा अजीत सिंह को दफा 302 के तहत पूरे प्राकृत जीवन भर के लिए कैद की सजा से दंडित किया गया है। इसके अलावा दफा 120 बी व 201 के तहत 5-5 वर्ष के कारावास से दंडित किए जाने का फैसला सुनाया गया। साथ ही दो अभियुक्तों पर कुल 15-15 हजार रुपए के अर्थदंड़ से भी दंडित किया गया है। सभी सजाएं साथ साथ चलेंगी।