वाशिंगटन: अमेरिका में H-1B वीजा धारकों और उनके परिवारों के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में बदले गए वीजा और इमिग्रेशन नियमों ने हजारों भारतीय परिवारों के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। नई नीति के तहत अब H-1B वीजा धारकों के बच्चों को जन्म से अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगी, जिससे उनकी भविष्य की योजनाएं अनिश्चितता में फंस गई हैं।
नए नियमों का क्या असर पड़ेगा?
H-1B वीजा एक अस्थायी नॉन-इमिग्रेंट वीजा है, जो विदेशों से आए पेशेवरों को अमेरिका में कानूनी रूप से काम करने की अनुमति देता है। पहले, वीजा धारकों के बच्चों को डिपेंडेंट वीजा मिलता था, जिससे वे अपने माता-पिता के साथ रह सकते थे। लेकिन अब 21 साल की उम्र पूरी होते ही वे इस सुविधा से बाहर हो जाएंगे, जिससे उनका अमेरिका में रहना मुश्किल हो सकता है।

1.34 लाख भारतीय बच्चे मुश्किल में
2023 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1.34 लाख भारतीय बच्चे ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे थे। लेकिन वीजा बैकलॉग और उम्र की सीमा के कारण अब वे अपने कानूनी दर्जे को खोने के खतरे में हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कई मामलों में ग्रीन कार्ड के लिए 12 साल से लेकर 100 साल तक का इंतजार करना पड़ सकता है, जिससे H-1B वीजा धारकों और उनके बच्चों की परेशानियां और बढ़ गई हैं।
DACA प्रोग्राम पर भी लगी रोक
टेक्सास की एक अदालत ने हाल ही में Deferred Action for Childhood Arrivals (DACA) प्रोग्राम के नए आवेदकों को वर्क परमिट देने से इनकार कर दिया। DACA पहले ऐसे बच्चों को दो साल की अस्थायी सुरक्षा देता था, जो बिना उचित दस्तावेजों के अमेरिका में रह रहे थे। लेकिन अब 21 साल की उम्र के बाद ये युवा न तो अपने माता-पिता के वीजा पर रह सकते हैं और न ही उन्हें कोई कानूनी संरक्षण मिल रहा है।
“अब हमारा क्या होगा?”
टेक्सास के एक छात्र ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा, “हमारा वेटिंग टाइम 23 साल है और मैं इस अक्टूबर में 21 साल का हो जाऊंगा। इसके बाद मेरा क्या होगा? पहले DACA हमें दो साल की एक्सटेंशन देता था, जिससे हम पढ़ाई और काम कर सकते थे। लेकिन अब बर्थराइट सिटिजनशिप खत्म होने के बाद सब कुछ अनिश्चित और डरावना लग रहा है।”
क्या अब भारतीय परिवारों को अमेरिका छोड़ना पड़ेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इमिग्रेशन नीति में बदलाव नहीं हुआ, तो हजारों भारतीय परिवारों को अमेरिका छोड़ने पर मजबूर होना पड़ सकता है। अमेरिका में जन्मे कई बच्चे, जो अपने देश भारत को शायद जानते भी नहीं, अब सेल्फ-डिपोर्टेशन यानी स्वेच्छा से देश छोड़ने की दुविधा में हैं।
अब देखना होगा कि अमेरिकी सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है, या फिर हजारों भारतीय परिवारों को अपने सपनों से समझौता करना पड़ेगा।
