बीजिंग: चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने शुक्रवार को कहा कि भारत-चीन के बीच सीमा विवाद और अन्य मतभेद द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं करने चाहिए। उन्होंने बीजिंग में अपनी वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि दोनों देशों के संबंध पिछले वर्ष में सकारात्मक दिशा में आगे बढ़े हैं, खासकर कज़ान (रूस) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सफल बैठक के बाद।
सीमा विवाद से आगे बढ़ने की कोशिश
वांग यी ने कहा, “दो प्राचीन सभ्यताओं के रूप में, हमारे पास इतना ज्ञान और क्षमता है कि जब तक सीमा मुद्दे का उचित और न्यायसंगत समाधान नहीं निकलता, तब तक हम सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रख सकते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन को एक-दूसरे की सफलता में भागीदार बनना चाहिए, न कि किसी एक मुद्दे को पूरे रिश्ते पर हावी होने देना चाहिए।

डेमचोक-देपसांग विवाद का हल और रिश्तों की बहाली
वांग यी की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कुछ महीने पहले भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख के डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों में सैन्य टकराव खत्म करने की प्रक्रिया पूरी की। यह कदम 54 महीने पुराने सैन्य तनाव को समाप्त करने और संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
इसके बाद, मोदी और शी जिनपिंग ने 23 अक्टूबर को कज़ान में मुलाकात की, जहां उन्होंने विभिन्न संवाद तंत्रों को फिर से सक्रिय करने का फैसला किया। इस कड़ी में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और वांग यी ने 18 दिसंबर को बीजिंग में 23वें विशेष प्रतिनिधि (SR) संवाद में हिस्सा लिया।
इसके अलावा, 26 जनवरी को भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बीजिंग जाकर अपने चीनी समकक्ष सुन वेइडोंग से ‘फॉरेन सेक्रेटरी-वाइस मिनिस्टर’ तंत्र के तहत चर्चा की।
‘हमें मिलकर नेतृत्व करना होगा’ – चीन
अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध पर प्रतिक्रिया देते हुए वांग यी ने कहा कि भारत और चीन को एक-दूसरे के खिलाफ काम करने की बजाय साथ मिलकर वैश्विक चुनौतियों का सामना करना चाहिए।
उन्होंने कहा, “ड्रैगन और हाथी के बीच सहयोग ही दोनों देशों के लिए सही रास्ता है। हमें एक-दूसरे का समर्थन करना चाहिए, न कि कमजोर करना। हमें सहयोग करना चाहिए, न कि एक-दूसरे से बचाव की रणनीति अपनानी चाहिए।”
चीन के विदेश मंत्री ने आगे कहा कि ग्लोबल साउथ के महत्वपूर्ण सदस्य होने के नाते, भारत और चीन की जिम्मेदारी है कि वे हेजेमोनिज्म (सत्ता वर्चस्व) और शक्ति की राजनीति के खिलाफ नेतृत्व करें। उनका यह बयान अमेरिका की ओर इशारा करता है, जो वैश्विक शक्ति संतुलन में प्रमुख भूमिका निभाता है।
क्या भारत-चीन संबंधों में नई शुरुआत होगी?
हाल ही में, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और वांग यी की एक बैठक में, जयशंकर ने बहुपक्षीय मंचों, विशेष रूप से G20 में भारत-चीन सहयोग की सराहना की। यह संकेत देता है कि दोनों देश अपने संबंधों को नई दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं।
अब सवाल यह है कि क्या यह सहयोग सीमा विवाद के पुराने घावों को भर पाएगा? क्या भारत और चीन वास्तव में नए सिरे से साझेदारी कर पाएंगे? या फिर सीमा मुद्दे की जटिलता के चलते यह सिर्फ एक कूटनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाएगी?
