सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश: हाई कोर्ट जल्द निपटाएं लंबित निष्पादन याचिकाएं

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज (6 मार्च) देशभर की सभी हाई कोर्ट्स को निर्देश दिया कि वे जिला न्यायपालिका में लंबित निष्पादन याचिकाओं (execution petitions) की जानकारी तत्काल जुटाएं और उनके शीघ्र निपटारे के लिए प्रशासनिक परिपत्र जारी करें। कोर्ट ने पाया कि निष्पादन अदालतों (executing courts) द्वारा मामलों के निपटारे में तीन से चार साल का समय लग रहा है, जिससे डिक्री-धारकों (decree-holders) के अधिकारों का हनन हो रहा है।

छह महीने में निपटाना होगा मामला, नहीं तो जवाबदेही तय होगी

सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट्स को निर्देश दिया कि वे अपने अधिकार क्षेत्र की जिला अदालतों को आदेश जारी करें कि लंबित निष्पादन याचिकाओं को छह महीने के भीतर निपटाएं। यदि इस अवधि में याचिकाओं का निपटारा नहीं होता है, तो संबंधित पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) को हाई कोर्ट के समक्ष जवाब देना होगा।

कोर्ट ने कहा—
“हम देशभर की सभी हाई कोर्ट्स को निर्देश देते हैं कि वे अपनी जिला न्यायपालिका से लंबित निष्पादन याचिकाओं की जानकारी प्राप्त करें। डेटा एकत्र होने के बाद, हाई कोर्ट्स प्रशासनिक आदेश या परिपत्र जारी करें और सुनिश्चित करें कि सभी निष्पादन याचिकाओं का निपटारा छह महीने के भीतर हो। यदि ऐसा नहीं होता है, तो संबंधित पीठासीन अधिकारी को हाई कोर्ट के प्रशासनिक पक्ष के समक्ष उत्तरदायी ठहराया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया का डेटा सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को भेजा जाए।”

पहले भी दिए जा चुके हैं निर्देश, फिर भी हो रही देरी

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में “राहुल एस शाह बनाम जिनेंद्र कुमार गांधी” मामले में यह निर्देश दिया था कि निष्पादन कार्यवाही दायर होने के छह महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए। 2022 में “भोज राज गर्ग बनाम गोयल एजुकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी” केस में भी यही आदेश दोहराया गया था। लेकिन कोर्ट ने पाया कि इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया और निष्पादन याचिकाएं वर्षों से लंबित पड़ी हैं।

36 साल पुराने केस में सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अय्यावू उदयार बनाम अन्य मामले में 36 वर्षों से लंबित निष्पादन प्रक्रिया पर कड़ा रुख अपनाते हुए निर्देश दिया कि पीड़ित पक्ष को दो महीने के भीतर संपत्ति का कब्जा सौंपा जाए, यदि आवश्यक हो तो पुलिस सहायता से।

यह मामला 1986 से लंबित था, जब अय्यावू उदयार ने विक्रय अनुबंध (agreement to sell) को लागू करवाने के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया था। बाद में उनके निधन के बाद, उनके कानूनी उत्तराधिकारियों ने मुकदमा जारी रखा।

  • 2004 में निष्पादन याचिका दायर की गई, लेकिन खारिज कर दी गई।
  • 2006 में सिविल पुनरीक्षण याचिका (civil revision petition) दायर कर आदेश प्राप्त किया गया।
  • 2008 में संपत्ति के कब्जे का आदेश पारित हुआ, लेकिन अमल में नहीं लाया गया।

अब सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने निष्पादन अदालत को दो महीने के भीतर डिक्री-धारकों को कब्जा दिलाने का आदेश दिया।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने निष्पादन अदालतों की सुस्ती को न्यायिक प्रणाली के लिए चिंता का विषय बताया और इस पर तत्काल सुधार के निर्देश दिए हैं। यह फैसला उन डिक्री-धारकों के लिए राहत भरा है, जो वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।