सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सियासी जंग: केंद्रीय मंत्री और बीआरएस नेताओं के बीच टकराव

हाल ही में, दिल्ली शराब नीति मामले में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के. कविता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद सियासी बवाल मच गया है। केंद्रीय मंत्री बंडी संजय कुमार ने कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस ने के. कविता के लिए जमानत का प्रबंध किया है।

केंद्रीय मंत्री का आरोप

केंद्रीय मंत्री बंडी संजय कुमार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में लिखा, “कांग्रेस पार्टी और उनके वकीलों को बीआरएस एमएलसी को कुख्यात शराब घोटाले में जमानत दिलाने के लिए बधाई। आपकी अथक कोशिशें आखिरकार रंग लाई। यह जमानत बीआरएस और कांग्रेस दोनों की जीत है—बीआरएस नेता बाहर हैं और कांग्रेस के आदमी को राज्यसभा में स्थान मिल गया है।”

उन्होंने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) पर भी तंज कसते हुए कहा कि उन्होंने कांग्रेस के उस उम्मीदवार का समर्थन किया जिसने जमानत के लिए बहस की थी और अब उसे राज्यसभा में बिना किसी विरोध के नामित किया जा रहा है।

बीआरएस का पलटवार

केंद्रीय मंत्री के इन आरोपों पर बीआरएस की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई। के. कविता के भाई और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामा राव (केटीआर) ने इन आरोपों को लेकर संजय कुमार पर निशाना साधा।

केटीआर ने X पर पोस्ट किया, “आप गृह मामलों के प्रभारी केंद्रीय मंत्री हैं और सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं!! यह आपके पद की गरिमा के खिलाफ है। मैं सम्मानपूर्वक भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करता हूं कि इन टिप्पणियों को संज्ञान में लेते हुए अवमानना की कार्यवाही शुरू करें।”

राजनीतिक विवाद का बढ़ता असर

यह मामला सिर्फ कानूनी मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे सियासी तापमान भी बढ़ गया है। केंद्रीय मंत्री और बीआरएस नेताओं के बीच यह टकराव अब केंद्र और राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक संघर्ष में बदलता दिख रहा है।

बीआरएस ने जहां केंद्रीय मंत्री के बयानों की निंदा की है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी इसे लेकर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। यह मामला आने वाले समय में और भी तूल पकड़ सकता है, जिससे राजनीतिक स्थिति और जटिल हो सकती है।

निष्कर्ष

कविता की जमानत और उसके बाद के बयानों ने भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। इस मामले में जहां एक ओर कानून और न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सियासी दलों के बीच टकराव और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। अब देखना यह होगा कि इस विवाद का अंत किस दिशा में जाता है और इसका राजनीतिक परिदृश्य पर क्या प्रभाव पड़ता है।