किल्ला मंदिर लोक न्यास पंजीयन के खिलाफ पेश दावा कोर्ट ने किया खारिज

शहर के प्रसिद्ध व पुरातन श्री किल्ला मंदिर समिति द्वारा गठित लोक न्यास के पंजीयन के विरोध में दाखिल दावा कोर्ट ने खारिज कर दिया है। प्रकरण में शासन की ओर से अति शासकीय अभिभाषक महेन्द्र सिंह राजपूत ने पैरवी की थी। वहीं इस मामले को लेकर अघिवक्ता अजय ठाकरे ने हाईकोर्ट में अपील की थी। जिसके आधार पर हाईकोर्ट ने इस दीवानी मुकदमे पर फिर से विचार करने का निर्देश कोर्ट को दिया था। विवाद का निराकरण करने के लिए हाईकोर्ट के निर्देश पर पुन: विचारण तृतीय अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ममता शुक्ला की अदालत में किया गया।

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। मामले के अनुसार 15 वर्ष पूर्व शहर के प्राचीन किल्ला मंदिर की संपत्ति के रखरखाव के लिए किल्ला मंदिर लोक न्यायस का गठन किया गया था। जिसका पंजीयन भी करवा लिया गया था। इस पंजीयन को चुनौती मंदिर के महंत यज्ञानंद ने चुनौती दी थी। चुनौती में मंहत मे दावा किया था गठित लोकन्यास का पंजीयन विधि विरूद्ध है तथा मंदिर की लगभग 3 करोड़ 95 लाख की संपत्ति पर सर्वाकार होने के नाते उनका हक है। साथ ही लोक न्यास का पंजीयन निरस्त कर इसे निजि संपत्ति घोषित किया जाए। इस दावा में महंत ने लोक न्यास पंजीयक, तमेर पारा निवासी शंकरलाल ताम्रकार, मैथिल पारा निवासी लक्ष्मीनारायण ताम्रकार, श्री बलराम को-ऑपरेटिव सोसायटी (सबकों) को पक्षकार बनाया गया था। वहीं शासन को औपचारिक पक्षकार बनाया था। शासन को औपचारिक पक्षकार बनाए जाने पर शासकीय अधिवक्ता महेन्द्र सिहं राजपूत द्वारा आपत्ति जाहिर की गई थी। इस आपत्ति को न्यायालय ने अस्वीकार करते हुए यज्ञानंद के पक्ष में फैसला दिया था। इस फैसले को अधिवक्ता अजय ठाकरे के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट में दलील दी गई कि लोकन्यास अधिनियम के तहत शासन औपचारिक पक्षकार की बजाए अनिवार्य पक्षकार रहता है। इस तरह से छग लोक न्यास अधिनियम की धारा 80 (2) का पालन प्रस्तुत दावा में नहीं किया गया है। हाईकोर्ट ने इसे संज्ञान में लेते हुए कोर्ट को आपत्ति पर फिर से विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। जिस पर न्यायाधीश ममता शुक्ला की अदालत में फिर से विचार किया गया और दावा में छग लोक न्यास अधिनियम की धारा 80 (2) का पालन नहीं किए जाने के आधार पर महत यज्ञानंद के दावा को खारिज कर दिया।

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