कौन चाहता है भारत का बंटवारा? पहलगाम नरसंहार और उसके बाद की साजिशें

नई दिल्ली: 22 अप्रैल को कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में आतंकियों ने धर्म पूछकर पर्यटकों को निशाना बनाया और निर्दोषों की निर्मम हत्या की। यह सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक बड़ी और गहरी साजिश छिपी थी — भारत को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की।

जहाँ पूरा देश इस त्रासदी से दुखी और स्तब्ध था, वहीं केंद्र सरकार के कुछ नेता, सत्ताधारी दल की सोशल मीडिया टीम और उससे जुड़े ट्रोल नेटवर्क ने इस घटना को एक राजनीतिक हथियार में बदल दिया। बिना संवेदना दिखाए, महज घंटों में सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट्स और एक विशेष धर्म के विरुद्ध उन्माद भड़काने वाली सामग्री प्रसारित की गई।

कश्मीरियों का साहस और इंसानियत:
आतंकी हमले के दौरान और बाद में सबसे बड़ी मिसाल पेश की कश्मीरियों ने। उन्होंने न केवल जान जोखिम में डालकर पर्यटकों को बचाया, बल्कि घायलों का इलाज कराया, उन्हें सुरक्षित ठिकानों तक पहुँचाया। यह भारत की साझा संस्कृति और इंसानियत की जीत थी। इसके बावजूद, सोशल मीडिया और कुछ सरकारी संगठनों की कोशिश रही कि इस हमले को मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए।

राजनीति की सस्ती चालें:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटना के बाद भी सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं हुए। उनके कई मंत्रियों ने घटना का राजनीतिकरण कर देशभक्ति को धर्म से जोड़ने की कोशिश की। पीयूष गोयल जैसे वरिष्ठ मंत्री ने बयान दिया कि जब तक देशवासी राष्ट्रवाद को ‘सर्वोपरि धर्म’ नहीं मानते, तब तक हमले होते रहेंगे — यह बयान उस समय आया जब पूरा देश एकजुटता और सहानुभूति की अपेक्षा कर रहा था।

सोशल मीडिया पर युद्ध:
भाजपा की आईटी सेल, पेड ट्रोल आर्मी और अन्य संगठनों ने इस घटना को साम्प्रदायिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं पत्रकारों, कलाकारों और यूट्यूबर्स को प्रताड़ित किया गया, एफआईआर दर्ज की गई और कुछ चैनलों को बंद तक करवा दिया गया। यह सब उस समय हुआ जब लोग सरकार की सुरक्षा नीतियों और विफलताओं पर सवाल पूछना शुरू कर चुके थे।

असली दुश्मन कौन?
सवाल यह उठता है कि जब देश को बांटने वाली हरकतें खुद सरकार समर्थक गुट ही कर रहे हों, तो दुश्मन की पहचान कैसे हो? क्या पहलगाम के हत्यारे केवल वे आतंकी हैं जिन्होंने गोली चलाई, या वे भी जो इस दर्दनाक घटना को नफ़रत फैलाने का औजार बना रहे हैं?

निष्कर्ष:
देश की जनता ने इस हमले पर पहले पहल जिस समझदारी और एकता का परिचय दिया, वह सराहनीय है। लेकिन यह एकता कायम रहे, इसके लिए अब ज़रूरत है कि आम लोग सतर्क रहें, तर्क से सोचें और उन साजिशों को पहचानें जो भारत को आपस में बाँटने का प्रयास कर रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *