कभी सातवाहन साम्राज्य की राजधानी रही ऐतिहासिक अमरावती एक बार फिर चर्चा में है। करीब 1,800 साल बाद, इस प्राचीन नगरी को आधुनिक राजधानी के रूप में पुनर्जीवित करने की कोशिशें जोरों पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहाँ ₹58,000 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास कर नई शुरुआत का संकेत दिया है।
इनमें से ₹49,000 करोड़ की लागत से 74 बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स शुरू किए जाएंगे, जिनमें आंध्र प्रदेश विधानसभा भवन, सचिवालय, हाई कोर्ट और न्यायिक अधिकारियों के आवास शामिल हैं।

“विज़न अमरावती” की कहानी
अमरावती को आंध्र प्रदेश की नई राजधानी बनाने की कल्पना सबसे पहले मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने 2014 में की थी, जब तेलंगाना अलग होकर हैदराबाद को अपने साथ ले गया था। उन्होंने विजयवाड़ा और गुंटूर के बीच बसे अमरावती को भविष्य की राजधानी के रूप में देखा और 29 गांवों के 30,000 किसानों से 33,000 एकड़ उपजाऊ ज़मीन प्राप्त की।
लेकिन 2019 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के बाद यह परियोजना ठप हो गई। मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने एक विवादास्पद तीन-राजधानी योजना प्रस्तुत की, जिससे अमरावती की भूमिका संकीर्ण हो गई और किसान आंदोलन पर उतर आए। इस दौरान कई अधूरी इमारतें और रुकी हुई परियोजनाएं अमरावती की पहचान बन गईं।
कानूनी लड़ाई और किसानों की जिद
पाँच वर्षों तक किसान अदालतों में गए, धरने दिए और ‘अमरावती परिरक्षण समिति’ जैसे संगठन बनाए। इस दौरान सिंगापुर और जापानी कंपनियों के साथ हुई अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां भी ख़त्म या सीमित हो गईं। 2019 तक ₹15,000 करोड़ खर्च हो चुके थे, पर प्रगति बहुत कम दिखी।
नई सुबह, पुरानी उम्मीदें
अब 2024 में एनडीए और भाजपा के समर्थन से चंद्रबाबू नायडू की सत्ता में वापसी हुई है। अमरावती को लेकर उन्होंने वादा किया है कि पिछली सरकार की नीतियों को फिर से ज़मीन पर उतारा जाएगा। कल इनावोलु गांव में आयोजित बैठक में राज्य के सिविल सप्लाई मंत्री नादेंदला मनोहर ने किसानों को आश्वासन दिया कि अब विकास सभी 29 गांवों में समान रूप से होगा।
सरकार अब अमरावती को एक मेगासिटी के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है, जिसमें गुंटूर, विजयवाड़ा, ताडेपल्ली और मंगळगिरि जैसे नगरों को जोड़ा जाएगा। एक नई रेलवे लाइन, आउटर/इनर रिंग रोड और अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जैसी बुनियादी ढांचे की योजनाएं भी तैयार की जा रही हैं।
अब देखना होगा कि क्या इस बार अमरावती “राजधानी के सपने” को साकार कर पाएगा या यह फिर से राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा।
