मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में धान और किसान एक दूसरे के पर्याय हैं। इसलिए हमने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और पर्यावरण को बचाने के लिए नया आर्थिक माडल लागू किया है। यह मॉडल गांधी जी की 150 जयंती पर शुरू किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की चुनौती का भी मुकाबला करने के साथ-साथ कृषि लागत में कमी लाने में सहायक है।
रायपुर (छत्तसीगढ़)। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शनिवार को बेंगलुरु में आयोजित द हिंदू हडल मीट 2020 कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कृषि क्षेत्र के विकास और औद्योगिक विकास के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित करने और प्रदूषण रोकने के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी के उपयोग को प्रोत्साहन देने की जरूरत भी बताई। उन्होंने सि मॉडल को देश के लिए मिसाल बताया। जहां ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि जीवन यापन का प्रमुख जरिया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की नरवा ,गरवा ,घुरवा, बारी योजना जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने के साथ-साथ कृषि लागत में कमी लाने में भी सहायक होगी। इससे किसानों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि नरवा योजना के अंतर्गत प्रदेश के 30 हजार नालों में से 1024 नालों में वाटर रिचार्जिंग का काम प्रारंभ किया गया है। दूसरे प्रदूषणों के साथ-साथ भूमिगत जल के असंतुलित दोहन से भी धरती गर्म हो रही है। मुख्यमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के विषय में कहा कि इसका असर छत्तीसगढ़ में भी व्यापक रूप से पड़ा है। मानसून की वर्षा में कमी आई है, पहले 60 इंच वर्षा होती थी जो अब घटकर 40 इंच हो गई है और जून में होने वाली बारिश अब जुलाई माह के आखिरी में होती है। इसका असर कृषि उत्पादन में और किसानों की क्रय शक्ति पर पड़ा रहा है। उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन को बढ़ाने और किसानों को भरपूर आमदनी मिले इसके लिए सुराजी गांव योजना के विभिन्न घटकों में काम शुरू किया गया है।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने केन्द्रीय पूल में धान जमा करने और सर्वभौम पीडीएस के बाद अतिरिक्त धान को ऐथेनॉल बनाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार यदि राज्य में उत्पादित अतिरिक्त अनाज से इथेनॉल उत्पादन की अनुमति देती है, तो इससे किसानों को उनकी उपज का अच्छा दाम मिलेगा, बायोएथेनॉल संयंत्र लगाने से रोजगार के अवसर बढेंगे और फ्यूल पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी। भण्डारण की समस्या का भी समाधान मिलेगा।
उन्होंने कहा कि जिन किसानों की जमीनों का अधिग्रहण उद्योगों या विकास परियोजनाओं के लिए किया जाता है, उनका बेहतर पुनर्वास होना चाहिए और उन्हें रोजगार के अवसर भी मिलना चाहिए। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के बस्तर के लोहंडीगुड़ा क्षेत्र में 10 गांवों के लगभग 17 सौ किसानों की 4200 एकड़ जमीन वापस की गई है। उनकी जमीन इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिए अधिग्रहित की गई थी लेकिन उद्योग नहीं लगाया गया था।