नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी को ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ कहने मात्र से धार्मिक भावनाएं आहत करने का अपराध नहीं बनता। हालांकि अदालत ने इन बयानों को असभ्य और अनुचित करार दिया, लेकिन इसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 298 के तहत अपराध मानने से इनकार कर दिया।
क्या था मामला?
यह मामला झारखंड के बोकारो जिले से जुड़ा है, जहां 80 वर्षीय हरि नंदन सिंह के खिलाफ मोहम्मद शमीम उद्दीन नाम के व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता उर्दू अनुवादक और आरटीआई क्लर्क के रूप में कार्यरत हैं। उनका आरोप था कि सिंह ने उनके साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया और उन पर हमला किया, जब वे अपने सरकारी कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे।

इस घटना के आधार पर सिंह के खिलाफ IPC की धारा 298 (धार्मिक भावना आहत करना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान), 506 (आपराधिक धमकी), 353 (लोक सेवक को कार्य से रोकने के लिए हमला) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
निचली अदालत और हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत
जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने चार्जशीट दायर की और जुलाई 2021 में मजिस्ट्रेट ने cognizance लेते हुए आरोपी को तलब किया। सिंह ने अपने खिलाफ लगे आरोपों को निरस्त करने के लिए अर्जी दाखिल की, जिसे 24 मार्च 2022 को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया। मजिस्ट्रेट ने धारा 323 (चोट पहुंचाने) के तहत आरोप हटाए, लेकिन 298, 353 और 504 के आरोप बरकरार रखे।
बोकारो की अतिरिक्त सत्र न्यायालय और झारखंड हाईकोर्ट ने भी सिंह की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपों से किया बरी
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता की धार्मिक भावनाएं आहत होने का कोई ठोस आधार नहीं है।
अदालत ने अपने 11 फरवरी को दिए गए फैसले में कहा कि सिंह के बयान अशोभनीय हैं, लेकिन IPC की धारा 298 के तहत अपराध नहीं बनते। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है जो यह साबित करे कि सिंह ने शिकायतकर्ता पर आपराधिक बल का प्रयोग किया या उनके शब्दों से कोई सार्वजनिक शांति भंग होने की स्थिति बनी।
सुप्रीम कोर्ट ने बोकारो सत्र न्यायालय और झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सिंह को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
नई दंड संहिता के तहत क्या होगा बदलाव?
गौरतलब है कि IPC की धारा 298 को अब ‘भारतीय न्याय संहिता (BNS)’ में धारा 302 से बदल दिया गया है, जो जुलाई 2024 से प्रभावी होगी।
