नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज ‘बुलडोजर न्याय’ पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती और आरोपी को अपराधी मानकर उसे दंड देना कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने इस पर आदेश देते हुए राज्यों को निर्देश जारी किए हैं।
अधिकारों की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया के पालन पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर परिवार का सपना होता है कि उसके पास एक घर हो। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या किसी आरोपी को दंडित करने के उद्देश्य से सरकार किसी का आश्रय छीन सकती है। कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका द्वारा अपराध के आधार पर घरों को गिराने का कदम ‘कानून के शासन’ के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इस तरह की कार्रवाई से न्यायपालिका के अधिकारों पर आघात होता है और कार्यपालिका के लिए ‘न्यायपालिका’ की भूमिका निभाना असंवैधानिक है।
अधिकारियों की जिम्मेदारी और कानून की प्रक्रिया का पालन अनिवार्य
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई सरकारी अधिकारी मनमानी या दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्रवाई करता है, तो उसे कानून के दायरे में जवाबदेह ठहराया जाएगा। न्यायालय ने आदेश में कहा कि यदि कोई अधिकारी इन निर्देशों का उल्लंघन करता है तो उस पर अदालत की अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी अवैध निर्माण को गिराने से पहले संबंधित व्यक्ति को नोटिस देना अनिवार्य होगा। उसे अपना पक्ष रखने के लिए कम से कम 15 दिनों का समय दिया जाएगा। इस नोटिस में अवैध निर्माण का विवरण और तोड़ने का आधार स्पष्ट रूप से दिया जाना चाहिए।
यदि इसके बाद भी अपीलीय प्राधिकरण द्वारा आदेश पर रोक नहीं लगाई जाती, तो ही अधिकारियों को ध्वस्तीकरण की अनुमति होगी। अदालत ने कहा कि यदि इस आदेश का उल्लंघन होता है तो दोषी अधिकारियों पर वेतन से खर्च की वसूली की जाएगी। साथ ही, सभी स्थानीय निकायों को एक डिजिटल पोर्टल शुरू करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है, जिसमें दिए गए नोटिस और आदेशों का विवरण मौजूद हो।