भारत का ओलंपिक और पैरालंपिक प्रदर्शन: अपेक्षाओं से कम, लेकिन सुधार की उम्मीद

पेरिस 2024 पैरालंपिक के कुछ दिन अभी भी बाकी हैं, और भारत इस बार ओलंपिक में मिले 71वें स्थान से बेहतर रैंकिंग की उम्मीद कर रहा है। इस बार की परफॉर्मेंस में सुधार के संकेत मिल रहे हैं। खासतौर पर पैरा शूटर अवनी लेखरा ने लगातार दूसरी बार गोल्ड मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया है।

लेकिन चाहे ओलंपिक हो या पैरालंपिक, भारत अपने जनसंख्या के हिसाब से वैश्विक खेल मंच पर उतना प्रभावशाली नहीं रहा है। 1900 से अब तक भारत ने ओलंपिक में केवल 41 मेडल जीते हैं। जबकि, दुनिया की कुल आबादी का छठा हिस्सा भारत में बसता है, इसके बावजूद हालिया ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जहां उसने सिर्फ 6 मेडल जीते।

हालांकि, खेल में सफलता सिर्फ जनसंख्या पर निर्भर नहीं करती। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका ने इस साल के ओलंपिक में भारत से पांच गुना ज्यादा एथलीट्स भेजे, जबकि उसकी जनसंख्या भारत से एक चौथाई ही है। TS Lombard के चीफ चाइना इकोनॉमिस्ट रोरी ग्रीन के अनुसार, पेरिस खेलों में जीडीपी के आधार पर 90 प्रतिशत मेडल काउंट में अंतर आया। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन इसके बावजूद खेलों में इसकी परफॉर्मेंस कमजोर क्यों है?

ओलंपिक में सफलता अक्सर जीडीपी के अनुसार बढ़ती है क्योंकि यह खेलों में खर्च का संकेतक होता है। “कैपिटल-इंसेटिव स्पोर्ट्स — जैसे जिम्नास्टिक्स, सेलिंग, स्विमिंग, रोइंग और डाइविंग — इस साल के उपलब्ध मेडल्स का 28 प्रतिशत हिस्सा थे,” ग्रीन बताते हैं। अमेरिका, चीन और ब्रिटेन इन खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं। आर्थिक विकास का मतलब है ज्यादा फुर्सत का समय और खेल संस्कृति का विकास।

भारत के लिए खेलों में सुधार की संभावना है, लेकिन इसके लिए अधिक निवेश, प्रशिक्षण और खेल संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता होगी।

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