केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मंगलवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीआर अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है। उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) में लेटरल एंट्री के माध्यम से आरक्षण के सिद्धांतों को लागू करके सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। वैष्णव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने सामाजिक न्याय को हमेशा प्राथमिकता दी है, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
अश्विनी वैष्णव ने बताया कि पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार ने सुनिश्चित किया है कि नीट (NEET), सैनिक स्कूलों और विभिन्न अन्य संस्थानों में आरक्षण के सिद्धांतों का पालन हो। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी ने बाबासाहेब अंबेडकर के पांच पवित्र स्थलों को उनका उचित सम्मान दिलाया है। वैष्णव ने इस बात पर भी गर्व जताया कि आज देश की राष्ट्रपति एक आदिवासी समुदाय से आती हैं।
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के “सैचुरेशन के सिद्धांतों” के तहत, जो प्रत्येक कल्याणकारी कार्यक्रम को सबसे गरीब और हाशिए पर खड़े समुदायों तक पहुंचाने का प्रयास करता है, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदायों को अधिकतम लाभ मिला है। वैष्णव ने बताया कि 2014 से पहले कांग्रेस सरकार के फैसलों में आरक्षण के सिद्धांतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। वित्त सचिवों को लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्त किया गया और उस समय आरक्षण के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी लेटरल एंट्री के माध्यम से सेवा में आए थे।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पीएम मोदी ने UPSC के माध्यम से लेटरल एंट्री को पारदर्शिता लाने का एक साधन माना और आरक्षण के सिद्धांत को शामिल कर इसे सामाजिक न्याय के प्रति एक स्पष्ट प्रतिबद्धता के रूप में प्रस्तुत किया।
हाल ही में, केंद्र सरकार ने UPSC से लेटरल एंट्री के लिए जारी नवीनतम विज्ञापन को वापस लेने के लिए कहा है। इस विज्ञापन में आरक्षित वर्गों के लिए पदों का उल्लेख न होने पर विवाद हुआ था। केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC की अध्यक्ष प्रीति सूदन को पत्र लिखकर विज्ञापन रद्द करने की मांग की ताकि हाशिए पर खड़े समुदायों को सरकारी सेवाओं में उनका सही प्रतिनिधित्व मिल सके। UPSC ने 17 अगस्त को एक अधिसूचना जारी कर 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए लेटरल एंट्री की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को भी शामिल किया गया।
इस निर्णय ने विपक्षी दलों की आलोचना को जन्म दिया, जिन्होंने दावा किया कि यह OBC, SC और ST के आरक्षण अधिकारों को कमजोर करता है।