शीर्ष अदालत का बड़ा फैसला, कुछ शर्तो के साथ सीजेआई दफ्तर आरटीआई के दायरे में शामिल

बुधवार को शीर्ष अदालत की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने शीर्ष अदालत व प्रधान न्यायाधीश के कार्यालयों को कुछ शर्तो के साथ सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के दायरे में शामिल किए जाने का फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने संविधान के आर्टिकल 124 के तहत ये फैसला दिया है। इस प्रकार से शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा है कि दोनों कार्यालय अब सूचना का अधिकार कानून के दायरे में आएगें लेकिन निजता व गोपनीयता का अधिकार बरकरार रहेगा।

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में कुछ शर्तों के साथ आएगा। इस फैसले के बाद अब कोलेजियम के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर डाला जाएगा. फैसला पढ़ते हुए जस्टिस रम्मना ने कहा कि आरटीआई का इस्तेमाल जासूसी के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता है।
यह था मामला
मुख्य सूचना आयुक्त ने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का दफ्तर आरटीआई के दायरे में होगा। इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया था। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने 2010 में चुनौती दी थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। इस मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा गया था।
पूर्व में संवैधानिक पीठ ने यह कहा था
पूर्व में इस मामले की सुनवाई करने वाली प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बेंच ने कहा था कि कोई भी अपारदर्शिता की व्यवस्था नहीं चाहता, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता। बेंच ने कहा था, कोई भी अंधेरे की स्थिति में नहीं रहना चाहता या किसी को अंधेरे की स्थिति में नहीं रखना चाहता। आप पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नष्ट नहीं कर सकते।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 10 जनवरी 2010 को दिया था फैसला
10 जनवरी 2010 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस पर एतिहासिक फैसला दिया था। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई कानून के दायरे में आता है। कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उस पर एक जिम्मेदारी है। 88 पन्नों के फैसले को तब तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन के लिए निजी झटके के रूप में देखा गया था, जो आरटीआई कानून के तहत न्यायाधीशों से संबंधित सूचना का खुलासा किए जाने के विरोध में थे। हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत की इस दलील को खारिज कर दिया था कि सीजेआई कार्यालय को आरटीआई के दायरे में लाए जाने से न्यायिक स्वतंत्रता बाधित होगी।