फैसलों पर चुनौती के बढ़ते मामलों से शीर्ष अदालत नाराज, कहा अपर्याप्त व गलत तरीके से सजा सुनाए जाने से बन रही यह स्थिति

शीर्ष अदालत ने निचली अदालतों द्वारा सुनाए गए फैसलों को चुनौती दी जाने वाली अपीलों की बढ़ती संख्यां पर नाराजगी जाहिर की है। अदालत ने कहा कि अपर्याप्त व गलत तरीके से फैसला सुनाए जाने के कारण यह स्थिति बन रही है। साथ ही यह भी कहा कि अदालतों को अपराध की प्रवृति के अनुसार सजा सुनाना चाहिए। क्योंकि न्याय प्रणाली के इस हिस्से का समाज पर निर्णायक असर पड़ता है।

नई दिल्ली। शीर्ष अदालत की न्यायमूर्ति एन.वी. रमना की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति एम.एम. शांतनगौदर और अजय रस्तोगी सदस्यों की पीठ ने यह टिप्पणी ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्तों को सुनाई गई सजा को हाइकोर्ट द्वारा कम किए जाने के खिलाफ की गई अपील पर विचार के दौरान की है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा यह अपील दाखिल की गई थी। अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि अपराधों के लिए सजा को तीन टचस्टोन, अपराध परीक्षण, आपराधिक परीक्षण और तुलनात्मक आनुपातिकता परीक्षण पर विश्लेषण किया जाना है। अपराध परीक्षण में कई कारकों को शामिल किया गया है, जिसमें नियोजन की सीमा, हथियार का विकल्प, अपराध का तरीका, अभियुक्त की भूमिका और पीडि़त की स्थिति शामिल है।
प्रकरण के अनुसार 15 अप्रैल, 2008 को, इन चार लोगों ने हथियारों के साथ शिकायतकर्ता के घर में घुस गए और अपनी गाय को बांधकर न रखने पर उस पर हमला किया। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने धारा 326 तथा 452 के तहत चार व्यक्तियों को दोषी ठहराया था। उन्हें तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी और उनमें से प्रत्येक पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया था। इसके बाद दोषियों ने मुकदमे के फैसले को चुनौती देते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की थी। उच्च न्यायालय ने अपील की अनुमति दी थी और उनकी सजा को कम करके उन्हें जेल में बिताई गई अवधि तक सीमित कर दिया था, जो केवल चार दिनों की थी। जुर्माना बढ़ाकर 1,500 रुपये कर दिया। राज्य ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को संशोधित करते हुए तीन दोषियों को तीन महीने के कारावास की सजा सुनाई और प्रत्येक पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। पीठ ने चौथे दोषी जिसकी आयु 80 वर्ष की है, को दो महीने के कारावास की सजा सुनाई और उस पर 65,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बात का कोई लाभ नहीं है कि सजा के पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि आपराधिक न्याय प्रणाली के इस हिस्से का समाज पर निर्धारक प्रभाव पड़ता है। उसी के प्रकाश में, हमारा विचार है कि हमें और स्पष्टता प्रदान करने की आवश्यकता है। हमारी राय है कि इस न्यायालय के समक्ष बड़ी संख्या में मामले दायर किए जा रहे हैं, क्योंकि नीचे दी गई अदालतों द्वारा अपर्याप्त या गलत सजा सुनाई गई है।