रायपुर (छत्तीसगढ़)। धान, किसान, लोककला, संस्कृति, इंफ्रास्ट्रक्चर और के साथ ही फिल्म जगत में भी छत्तीसगढ़ की विशिष्ट पहचान बन रही है। 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में छत्तीसगढ़ की फिल्म ‘भूलन द मेज’ को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। इसे छत्तीसगढ़ी सिनेमा के जाने-माने डायरेक्टर मनोज वर्मा ने छत्तीसगढ़ी भाषा में बनाई है। यह फिल्म भूलन कांदा उपन्यास पर आधारित है, इसके लेखक संजीव बख्शी हैं।
फिल्म के टाइटल में भूलन शब्द का जिक्र है, इसका मतलब भूलन कांदा से है। यह छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाया जाने वाला एक पौधा है, जिस पर पैर पड़ने से इंसान सब कुछ भूलने लगता है। रास्ता भूल जाता है, वह भटकने लगता है, इस दौरान कोई दूसरा इंसान जब आकर उस इंसान को छूता है तब जाकर फिर से वह होश में आता है।
इसी भूलन कांदा पर ”भूलन द मेज” फिल्म बनी है। फिल्म के जरिये आज के सामाजिक, इंसानी, सरकारी व्यवस्था में आए भटकाव को दिखाया गया है। इस फिल्म की शूटिंग गरियाबंद के भुजिया गांव में हुई थी इसमें एक्टर ओंकार दास मानिकपुरी ने काम किया है। इस फिल्म के टाइटल सॉन्ग का म्यूजिक कैलाश खेर ने दिया।
बता दें बीते 22 मार्च को ही तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पुरस्कारों की घोषणा की थी। इसमें छत्तीसगढ़ बोली की फिल्म भूलन द मेज को भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। भूलन द मेज को इससे पहले कोलकाता, दिल्ली, ओरछा, आजमगढ़, रायपुर, रायगढ़, एवं अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल इटली एवं कैलिफोर्निया में भी पुरस्कार मिल चुका है। ”भूलन द मेज” के नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार जीतने वाली छत्तीसगढ़ की पहली फिल्म का रिकॉर्ड भी बन गया है। नई फिल्म नीति के तहत छत्तीसगढ़ सरकार ने भी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाली छत्तीसगढ़ की फिल्म को एक करोड़ रुपये की अनुदान राशि देने की घोषणा की है।