नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद एक पुराने वित्तीय घोटाले पर फिर से बहस छिड़ गई है। यह मामला सिंभौली शुगर मिल घोटाले से जुड़ा हुआ है, जिसमें वर्मा का नाम भी आरोपी के रूप में दर्ज था।
कैसे शुरू हुआ सिंभौली शुगर मिल घोटाला?
फरवरी 2018 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सिंभौली शुगर्स लिमिटेड के खिलाफ जांच शुरू की थी। यह मामला ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स द्वारा दायर की गई शिकायत पर आधारित था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कंपनी ने किसानों के लिए स्वीकृत ₹97.85 करोड़ के ऋण का गबन कर अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया।

मई 2015 तक इस मामले को “संदिग्ध धोखाधड़ी” के रूप में चिह्नित कर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को रिपोर्ट कर दिया गया था। इसके बाद, CBI ने 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें यशवंत वर्मा को दसवें आरोपी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। उस समय वर्मा कंपनी में एक गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्यरत थे।
CBI जांच क्यों हुई ठंडे बस्ते में?
भले ही मामला गंभीर था, लेकिन 2018 के बाद कोई महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं की गई। फरवरी 2024 में एक अदालत ने CBI को रुकी हुई जांच फिर से शुरू करने का आदेश दिया था। हालांकि, इससे पहले कि कोई ठोस प्रगति हो पाती, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया और CBI की प्रारंभिक जांच (PE) को तत्काल प्रभाव से बंद करवा दिया। इस फैसले से सिंभौली शुगर मिल घोटाले की जांच पर पूर्ण विराम लग गया।
यशवंत वर्मा के घर से नकदी मिलने से फिर उठे सवाल
हाल ही में जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना के बाद वहां से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई। इसने उनके पिछले वित्तीय लेन-देन पर नए सिरे से सवाल खड़े कर दिए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि 2018 में CBI की निष्क्रियता और 2024 में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने इस पूरे मामले पर गंभीर संदेह पैदा कर दिया है। आलोचकों का तर्क है कि इस मामले में प्रभावशाली व्यक्तियों को बचाने के लिए जानबूझकर कार्रवाई नहीं की गई।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस नई नकदी बरामदगी के बाद क्या जांच एजेंसियां वर्मा और सिंभौली शुगर मिल घोटाले से जुड़े अन्य पहलुओं की दोबारा जांच करेंगी या नहीं।
