नई दिल्ली: एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2016 के पेरिस समझौते के बाद से अमेरिका और भारत ने जलवायु नीतियों को लागू करने में सबसे अधिक प्रगति की है। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर द्वारा तैयार किए गए आंकड़े दिखाते हैं कि जी20 देशों ने मिलकर ऐसी नीतियां अपनाई हैं, जिनसे 2030 तक 6.9 गीगाटन CO2 उत्सर्जन में कमी आने की संभावना है।
हालांकि यह पेरिस समझौते के 1.5C-2C के लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन यह 2015 में की गई भविष्यवाणी की तुलना में बड़ी प्रगति है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन नीतियों ने 2015 से 2030 के बीच संभावित तापमान वृद्धि को लगभग 0.9C तक सीमित किया है।
अमेरिका और भारत में नेतृत्व और प्रगति
अमेरिका और भारत ने जी20 देशों में सबसे अधिक CO2 उत्सर्जन में कमी दर्ज की है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा शुरू किए गए “इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट” के कारण अमेरिका ने 2015-2030 के बीच 2 गीगाटन उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य रखा है। भारत दूसरे स्थान पर है, जिसका योगदान 1.4 गीगाटन है।
ट्रंप की नीतियों से खतरा
लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के संभावित कार्यकाल को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने और नवीकरणीय ऊर्जा प्रोत्साहनों को खत्म करने की धमकी दी है। यदि ऐसा होता है, तो न केवल अमेरिका की प्रगति रुक जाएगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी नकारात्मक संदेश जाएगा।
फॉसिल फ्यूल और रिन्यूएबल ऊर्जा
विशेषज्ञों का कहना है कि सौर और पवन ऊर्जा की लागत में कमी से नवीकरणीय ऊर्जा का विकास तेज़ हो रहा है। हालांकि, यह जरूरी है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति बनी रहे। चीन, जो दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ने भी नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश किया है और 2030 के जलवायु लक्ष्यों को पहले ही प्राप्त करने की दिशा में है।
चुनौतियां और आगे का रास्ता
भले ही प्रगति हो रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह पर्याप्त नहीं है। “1.5C लक्ष्य को पाने के लिए देशों को अपने प्रयासों में कई गुना वृद्धि करनी होगी,” क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के लियोनार्डो नासिमेंटो ने कहा।