हाल ही में, राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति में एक नई रणनीति शुरू की है, जिसमें जनता को लुभाने के लिए झूठी गारंटियों का सहारा लिया जा रहा है। चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करना और जनता से समर्थन जुटाने के बाद उन वादों को पूरा न करना अब एक चलन बनता जा रहा है। हिमाचल प्रदेश इसका ताज़ा उदाहरण है।
हिमाचल प्रदेश का आर्थिक संकट
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जनता से कई गारंटियां कीं, जिनमें मुफ्त सुविधाएं और आर्थिक राहत शामिल थीं। लेकिन जब सरकार ने इन वादों को लागू करने की कोशिश की, तो राज्य की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई।
सुक्खू को यहां तक कहना पड़ा कि वे दो महीने की अपनी तनख्वाह नहीं लेंगे। इसका कारण राज्य की बिगड़ती आर्थिक स्थिति है, जो इन गारंटियों के बोझ के कारण और भी खराब हो गई है। विकास के लिए पैसा नहीं बचा, और राज्य कर्ज़ के दलदल में फंसता जा रहा है।
चर्चा और काम की कमी
इससे भी बड़ी समस्या यह है कि कांग्रेस सरकार ने अपने वादों के बाद जनता या विशेषज्ञों के साथ कोई ठोस चर्चा नहीं की। वादे कर लिए गए, लेकिन उनकी व्यवहार्यता पर विचार नहीं किया गया। न ही उनकी क्रियान्वयन के बारे में सोचा गया। नतीजा यह हुआ कि राज्य में विकास कार्य ठप हो गए और जनता को जो उम्मीदें थीं, वे धरी की धरी रह गईं।
राजनीति की नई दिशा
यहां यह सोचना ज़रूरी है कि क्या इस तरह की राजनीति देश और राज्यों के लिए फायदेमंद है। चुनावी वादों का मतलब जनता को भ्रमित करना नहीं होना चाहिए। अगर वादे पूरे नहीं होते, तो इसका सीधा असर जनता के जीवन पर पड़ता है। हिमाचल प्रदेश में जो हो रहा है, वह भविष्य के लिए एक चेतावनी है।
अगर इस तरह की राजनीति जारी रहती है, तो इसका नतीजा यह होगा कि जनता का भरोसा सरकारों पर से उठ जाएगा, और राज्य और देश की प्रगति अवरुद्ध हो जाएगी।
निष्कर्ष
राहुल गांधी की गारंटी वाली राजनीति ने हिमाचल प्रदेश को संकट में डाल दिया है। बिना चर्चा और बिना ठोस योजना के किए गए वादों का नतीजा यह होता है कि राज्य की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है, और विकास के कार्य रुक जाते हैं। यह जरूरी है कि राजनीतिक दल अपने वादों को लेकर ज़िम्मेदार बनें और जनता के साथ ईमानदारी से पेश आएं। हिमाचल प्रदेश का उदाहरण यह दिखाता है कि झूठी गारंटियों का खेल कितना खतरनाक हो सकता है।