तंत्र साधना के लिए दी थी मासूम की बली, तांत्रिक दंपत्ति की फांसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने रखी बरकरार, मामले में दुर्ग न्यायालय ने 2014 में दिया था फैसला

भिलाई के रुआबांधा क्षेत्र में तंत्र साधना के लिए मासूम की दी गई बली के बहुचर्चित मामले में शीर्ष अदालत ने दो आरोपियों को फांसी दिए जाने की सजा को बरकरार रखा है। इस मामले के तांत्रिक दंपत्ति सहित 7 आरोपियों को दुर्ग न्यायालय द्वारा वर्ष 2014 में फांसी के फंदे पर मृत्यु तक लटकाए जाने का फैसला दिया था। शीर्ष अदालत ने तंत्रिक दंपत्ति की नरबली के लगातार दो प्रकरणों में संलिप्ता पाए जाने पर इसे विरल से विरतम प्रकरण माना और फांसी की सजा को यथावत रखे जाने का निर्णय दिया है।

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। इस्पात नगरी भिलाई के रूआबांधा क्षेत्र में वर्ष 2011 को क्षेत्र के मासूम का अहरण कर नरबली दे दी गई थी। इस मामले का खुलासा होने पर भिलाई नगर पुलिस ने तांत्रिक दंपत्ति ईश्वरी लाल यादव तथा उसकी पत्नी किरण बाई सहित अन्य के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध किया था। इस प्रकरण पर जिला सत्र न्यायाधीश गौतम चौरडिया की अदालत में विचार किया गया था। जिला न्यायाधीश ने 27 मार्च 2014 को दिए गए इस फैसले में मामले से जुड़े सभी 7 आरोपियों को दफा 364 के तहत उम्रकैद तथा हत्या के आरोप में दफा 302 व आपराधिक षडयंत्र रचने के आरोप में दफा 120 बी के तहत फांसी की सजा से दंडि़त किए जाने का फैसला सुनाया था। मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से लोक अभियोजक सुदर्शन महलवार तथा विशेेेष लोक अभियोजक सुुरेश शर्मा ने पैरवी की थी। सत्र न्यायालय के इस फैसले को पुष्टि के लिए हाईकोर्ट भेजा गया था। हाईकोर्ट ने तांत्रिक दंपत्ति की फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए अन्य आरोपियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में परिवर्तित कर दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध शीर्ष अदालत में अपील की गई थी।
जानिए शीर्ष अदालत ने क्या कहा
हाईकोर्ट द्वारा फांसी के फैसले को बरकरार रखे जाने के खिलाफ की गई इस अपील पर न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ में विचार किया गया। पीठ ने रिकॉर्ड में लाये गये साक्ष्यों की समीक्षा के बाद सर्वसम्मति से फैसला दिया कि यह विरलों में विरलतम (रेयरेस्ट ऑफ द रेयर) मामला है, जिसके लिए मौत की सजा दी जा सकती है। पीठ ने मानव बलि के उद्देश्य से छह साल की लड़की की हत्या के एक अन्य अपराध के लिए इन्हें हाईकोर्ट की ओर से दी गयी बगैर किसी क्षमा या परोल के आजीवन कारावास की सजा भी बरकरार रखी। चिराग की हत्या के लिए मृत्युदंड बरकरार रखते हुए पीठ ने कहा कि इस मामले में साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि मुख्य अभियुक्त ईश्वरी लाल यादव और किरण बाई ने भगवान को बलि के नाम पर दो साल के बच्चे चिराग की हत्या की है। इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उस वक्त उनके खुद तीन नाबालिग बच्चे थे। इसके बावजूद उन्होंने दो साल के बच्चे की निर्मम हत्या की। उस असहाय बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था, उसकी जिह्वा और उसके गाल भी काटे गये थे। बच्चे की उम्र का ध्यान करके भी इनके अंदर इंसानियत नहीं जगी, इनके अंदर आत्मा या मनोभाव नाम की कोई चीज नहीं है, जिसमें सुधार की कोई गुंजाइश हो। दोनों अपीलकर्ताओं ने सुनियोजित तरीके से हत्या को अंजाम दिया था। पीठ ने कहा कि एक ही तरह के अपराध की पुनरावृत्ति के लिए दोषी ठहराये जाने को निकृष्ट कारक के रूप में देखा जा सकता है। यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामला है और निचली अदालत द्वारा निर्धारित मौत की सजा को हाईकोर्ट ने बरकरार रखकर सही निर्णय दिया है।
इससे पहले भी दंपत्ति ने दी थी एक अन्य मासूम की बली
नरबली की इस वारदात से पूर्व तांत्रिक दंपत्ति ईश्वर लाल यादव तथा किरण ने कसारीडीह से एक 6 साल की मासूम को अगवा करवा कर बली दी थी। बली के इस मामले में भी सत्र न्यायालय द्वारा तांत्रिक दंपत्ति सहित 4 आरोपियों को दोषी पाया गया था और फांसी की सजा से दंडि़त किए जाने का फैसला दिया था। हाईकोर्ट ने फांसी की इस सजा को उम्रकैद में परिवर्तित कर दिया था।
यह था मामला
आरोपी किरण बाई और उसका पति ईश्वरी लाल यादव तंत्रविद्या में विश्वास करते थे। किरण बाई सिद्धि पाना चाहती थी। वह गुरुमाता के नाम से भी जानी जाती थी। भगवान को प्रसन्न करने के लिए उसने अपने पति और सहअभियुक्त अनुयायियों को मानव बलि के लिए एक बच्चा लाने को कहा था। भगवान को बलि देने के लिए पड़ोस के दो साल के बच्चे चिराग को अगवा कर लिया गया और अभियुक्त दम्पती के घर के अंदर ही उसकी बर्बर हत्या कर दी गयी। उसके बाद उसे घर के अहाते में ही दफना दिया गया।

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