विधिक सेवा जागरूकता शिविर : बच्चों को शिक्षित करने में कोताही न बरतें अभिभावक

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। बच्चों को शिक्षित करने के प्रति जागरुकता लाने ग्राम सेलूद में विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें बताया गया कि शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है। बच्चों को शिक्षित किए जाने के प्रति अभिभावक जागरुक रहे और उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित करें। शिविर में मौजूद विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव राहुल शर्मा ने कहा कि शिक्षा सफलता की कुंजी है। किसी भी समाज, राज्य व देश का विकास वहां के युवाओं की क्षमता पर निर्भर करता है। जिसके लिए शिक्षित होना जरुरी है। बालकों के साथ साथ बालिकाओं को भी बराबरी से शिक्षित किया जाना चाहिए।
बता दें कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष व जिला सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में नालसा की हमर अंगना योजना के प्रति नागरिकों को जागरुक किए जाने का अभियान चलाया जा रहा है। इसी तारत्मय में ग्राम सेलूद में शिविर का आयोजन प्राधिकरण के तत्वाधान में किया गया था। जिसमें जो बालक-बालिका पढ़ाई छोड़ चुके है। उनको फिर से शिक्षा का महत्व बताते हुए पढ़ाई पुन: शुरू करवाये जाने के लिए प्रेरित किया गया। शिविर में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव राहूल शर्मा ने बताया कि बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है परंतु प्राय: यह देखा गया है कि कुछ माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने में कोई रूचि नही रखते है। यह भी देखा गया है कि बच्चों को व्यवसाय हेतु पढ़ाई को महत्व नही देते। यह भी पाया जा रहा है कि ग्रामीण एरिया में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखा जाता है। वर्तमान समय में लड़का एवं लड़की दोनों बराबर है। आज लड़कियां, लड़को से कदम से कदम मिलाकर चल रही है ऐसे में लड़का-लड़की में भेदभाव करना एक बीमार मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 21 (क) और आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को लागू हुआ। आरटीई अधिनियम के शीर्षक में नि:शुल्क और अनिवार्य शब्द सम्मिलित हैं। नि:शुल्क शिक्षा का तात्पर्य यह है कि किसी बच्चें जिसको उसके माता.पिता द्वारा स्कूल में दाखिल किया गया है, को छोड़कर कोई बच्चा, जो उचित सरकार द्वारा समर्थित नहीं हैं, किसी किस्म की फीस या व्यय जो प्रारंभिक शिक्षा जारी रखने और पूरा करने से उसको रोके अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। अनिवार्य शिक्षा के अंर्तगत उचित सरकार और स्थानीय प्रधिकारियों पर 6 से 14 वर्ष के बच्चों को प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने का प्रावधान करने और सुनिश्चित करने की बाध्यता रखती है। उन्होंने ग्रामवासियों से कहा कि शिक्षा कभी किसी के लिए अभिशाप नही हो सकती। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत शिक्षा प्रदान किये जाने हेतु एक किलोमीटर के दायरे में बच्चों को शिक्षा को शिक्षा प्रदान किये जाने हेतु खोले गए हैं। 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा नि:शुल्क किया गया। जिसमें पुस्तक, कापी, यूनिफार्म का खर्चा भी सरकार के द्वारा वहन किया जात है।