दुर्ग (छत्तीसगढ़)। भारतीय जनता पार्टी की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राज्य सभा सांसद सरोज पाण्डेय को स्थान न दिए जाने से छत्तीसगढ़ की राजनीति में नए समीकरण बनने के आसार नजर आ रहे हैं। घोषित कार्यकारिणी को लेकर भाजपा का एक बड़ा खेमा उत्साहित नजर आ रहा है। माना जा रहा है कि आलाकमान के इस निर्णय से राज्य में जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को तवज्जो मिलेगी और गुटीय असंतुलन पर रोक लगेगी।
बता दें कि सासंद सरोज पांडेय भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बेहद करीब माना जाता रहा है। लेकिन नई कार्यकारिणी में उन्हें करारा झटका लगा है। उन्हें न सिर्फ राष्ट्रीय महासचिव पद से हटा दिया गया है, बल्कि कार्यकारिणी में भी कोई भी जगह नहीं दी गई है। इसे संगठन के चुनावों में दौरान विवादों और उनके खिलाफ राष्ट्रीय आलाकमान से शिकायतों से जोड़कर देखा जा रहा है। सांसद सरोज राष्ट्रीय महासचिव के साथ महाराष्ट्र के प्रभारी का भी दायित्व संभाल रही थी।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शनिवार को अपनी नई कार्यकारिणी की घोषणा की। इसमें 12 राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और 8 राष्ट्रीय महामंत्रियों को जगह दी गई है। इनमें प्रदेश से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह एकमात्र नेता रहे, जिन्हें वरिष्ठ उपाध्यक्ष के रूप में जगह दी गई है।
भाजपा के मंडल और जिला अध्यक्षों के चुनाव को लेकर जिले में जमकर बवाल मचा था। इस दौरान सांसद सरोज पर चहेतों को कार्यकर्ताओं की मर्जी के खिलाफ मंडल अध्यक्ष के पदों पर नियुक्त कराने के आरोप लगे थे। इस दौरान कार्यकर्ताओं से धक्का-मुक्की और विवाद के वीडियो भी वायरल हुए थे। मामला प्रदेश और राष्ट्रीय आलाकमान तक भी पहुंचा था। इसके बाद से चुनाव अधर में है और दुर्ग व भिलाई जिला अध्यक्ष का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है। राजनैतिक महत्वकांक्षा को लेकर सांसद सरोज पांडेय की प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं से संबंध बेहतर नहीं रहे हैं। यहां तक कि कई पदाधिकारी व कार्यकर्ता खासतौर से दुर्ग जिले में विधानसभा व नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी की करारी हार का जिम्मेदार सरोज पांडेय की दखलंदाजी को ठहरा चुके हैं। प्रायः संगठन की हर बैठक में जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा किए जाने का मुद्दा उठाया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय के अलावा सांसद विजय बघेल से उनकी दूरी की खबरें लगातार सामने आती रहीं हैं। स्थानीय स्तर पर बढ़ते विरोध के चलते उन्हें विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान भी प्रचार से दूर रखा गया था।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह नहीं मिलने को सांसद सरोज के राजनीतिक कद में कटौती के रूप में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे जिले में भाजपा का राजनीतिक समीकरण और गुटीय संतुलन भी बदल जाएगा। अब तक सांसद सरोज के शीर्ष नेतृत्व के करीबी होने के कारण समर्थकों का बड़ा समूह स्थानीय नेतृत्व को नजरअंदाज कर उनके साथ चल रहा था। अब कद घटने से ऐसे लोगों के किनारा कर लेने की संभावना अधिक है।