बीजापुर/सुकमा — छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर स्थित करगट्टा पहाड़ियों में 28,000 से अधिक सुरक्षाबलों द्वारा माओवादी शीर्ष नेतृत्व को पकड़ने के लिए चलाया गया सबसे बड़ा एंटी-इंसर्जेंसी ऑपरेशन आखिरकार 20 दिन बाद समाप्त कर दिया गया है।
यह ऑपरेशन 21 अप्रैल को शुरू हुआ था, जब खुफिया रिपोर्टों से पता चला कि भाकपा (माओवादी) का शीर्ष नेतृत्व करगट्टा की पहाड़ियों में छिपा हुआ है। इनकी सुरक्षा पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) की बटालियन-1, जो माओवादियों की सबसे खतरनाक और शक्तिशाली सैन्य इकाई मानी जाती है, कर रही थी।

हालांकि ऑपरेशन बंद होने की पुष्टि हो चुकी है, परंतु इसे अचानक क्यों रोका गया, इस पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और राज्य पुलिस मंगलवार सुबह इस विषय पर मीडिया को संबोधित करेंगे।
यह ऑपरेशन कई मायनों में महत्वपूर्ण माना गया, क्योंकि इसका उद्देश्य PLGA की ताकत को तोड़ना था। यह वही इकाई है जो सुकमा और बीजापुर में छह बड़े हमलों में शामिल रही है, जिनमें जनवरी 2024 में टेकलगुड़ा, सुकमा में तीन जवानों की हत्या भी शामिल है।
ऑपरेशन के दौरान चुनौतीपूर्ण 700 मीटर ऊंची और सघन जंगलों से ढकी पहाड़ियों को पार करना पड़ा। इस अभियान में एलीट ग्रेहाउंड्स के तीन जवान आईईडी विस्फोट में शहीद हो गए, जबकि सीआरपीएफ, डीआरजी और एसटीएफ के 6-7 जवानों को मामूली चोटें आईं।
सरकारी सूत्रों के अनुसार इस ऑपरेशन में कम से कम चार माओवादी मारे गए हैं, जबकि अंदरूनी रिपोर्टों में यह संख्या दो दर्जन से अधिक बताई जा रही है, जिनमें एक वरिष्ठ माओवादी नेता भी शामिल है। ऑपरेशन में करीब 2 टन विस्फोटक सामग्री, 400 से अधिक आईईडी और 40 हथियार बरामद किए गए हैं।
2025 में अब तक बस्तर क्षेत्र में 129 और पूरे छत्तीसगढ़ में 146 माओवादी मारे जा चुके हैं। 2024 में यह आंकड़ा 219 था, जिनमें 217 माओवादी केवल बस्तर में मारे गए थे।
गृह मंत्री अमित शाह द्वारा मार्च 2026 तक माओवाद को समाप्त करने के लक्ष्य की दिशा में इसे एक बड़ी सफलता माना जा रहा है।
