बस्तर की शोभा बघेल शीशल कला को दे रही नई पहचान, हुनर से सजा रही जिंदगी

जगदलपुर (बस्तर): छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल अपनी समृद्ध शिल्प कलाओं के लिए प्रसिद्ध है, जहां काष्ठ कला, टेराकोटा, बेलमेटल और लौह शिल्प जैसे परंपरागत हस्तशिल्पों की अनूठी पहचान है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, बस्तर जिले के परचनपाल निवासी शोभा बघेल शीशल कला के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना रही हैं।

शोभा बघेल शीशल रस्सी से डायनिंग मेट, पी-कोस्टर, नाव, झूमर, गुड़िया, बास्केट, साइड पर्स, झूला, दीवार सजावट सामग्री और लेटर होल्डर जैसी कलात्मक वस्तुएं तैयार कर रही हैं। साथ ही, वह विभिन्न स्थानों पर ग्रामीणों और छात्रों को इस पारंपरिक कला का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं।

बाजारों और मेलों में बढ़ रही मांग

शोभा बघेल अपनी कलात्मक वस्तुओं को शबरी एम्पोरियम, बिहान मड़ई, शिल्प महोत्सव, बस्तर मड़ई, चित्रकोट महोत्सव, आमचो बस्तर बाजार, राज्य के आधुनिक मॉल और सरस मेला जैसे आयोजनों में बेच रही हैं। उनके हस्तनिर्मित उत्पादों की मांग अब छत्तीसगढ़ से बाहर अन्य राज्यों में भी बढ़ रही है। उनके हुनर के दम पर उनकी मासिक आय 20 से 25 हजार रुपये तक पहुंच चुकी है, जिससे उन्होंने अपने परिवार को आर्थिक रूप से सशक्त बना दिया है।

बच्चों की शिक्षा और समाज सेवा में सक्रिय भूमिका

शोभा बघेल अपनी आमदनी से अपने बेटे भगतसिंह बघेल को ग्रेजुएशन तक पढ़ा चुकी हैं, जबकि उनकी बेटी पिंकी बघेल बीएससी नर्सिंग कर चुकी हैं और जगदलपुर के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में स्टाफ नर्स के रूप में कार्यरत हैं।

स्व-सहायता समूहों को सिखा रही हैं हुनर

शोभा और उनके पति बंशी बघेल विभिन्न स्थानों पर शीशल कला का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत महिला स्व-सहायता समूहों को प्रशिक्षण देने के साथ केंद्रीय विद्यालय जगदलपुर और नवोदय विद्यालय जगदलपुर के छात्रों को भी इस कला में दक्ष बनाया है।

इस समय वे ओडिशा के बलांगीर जिले के नवोदय विद्यालय बेलपाड़ा में शीशल कला का प्रशिक्षण दे रही हैं। उन्होंने बताया कि बिहान योजना से जुड़ने के बाद उन्हें आजीविका के नए अवसर मिले, जिससे उनके उत्पादों को उचित बाजार मिला और महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।

महिलाओं को मिली आर्थिक सहायता और पहचान

बिहान योजना के तहत रिवाल्विंग फंड और सामुदायिक निवेश कोष के माध्यम से शीशल कला से जुड़ी महिलाओं को दो लाख रुपये से अधिक की आर्थिक सहायता दी गई है। इससे जुड़ी महिलाएं अब अपने हस्तशिल्प को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने के लिए जुटी हुई हैं।

हस्तशिल्प को वैश्विक मंच देने की तैयारी

बस्तर की इस अनूठी कला को बढ़ावा देने के लिए सरकार और विभिन्न संस्थाएं भी प्रयास कर रही हैं। शोभा बघेल जैसी हस्तशिल्पकार न केवल अपने परिवार को सशक्त बना रही हैं, बल्कि सैकड़ों महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दे रही हैं।

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