रायपुर, 12 मार्च 2025: छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध लोक संस्कृति और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, और यहां होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है। गांवों और शहरों में नगाड़ों की गूंज से पहले ही माहौल रंगीन हो जाता है, और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ होलिका दहन और रंगोत्सव मनाया जाता है।
पवित्रता और परंपरा से जुड़ा होलिका दहन
छत्तीसगढ़ में होलिका दहन की प्रक्रिया विशेष रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ी होती है। गांवों में पूर्व निर्धारित स्थान पर लकड़ियां, कंडे और अन्य सामग्री इकट्ठी की जाती हैं। एक बार जो सामग्री होलिका में रखी जाती है, उसे निकालना अशुभ माना जाता है।

इस अवसर पर गांव के पुरोहित और बैगा मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना करते हैं, जिसके बाद अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है। इसके बाद गांव के लोग होलिका की परिक्रमा कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
पकवानों की सुगंध से महकता घर-आंगन
होली के अगले दिन कुलदेवता की पूजा का विशेष महत्व होता है। सुबह देवी-देवताओं की आराधना के बाद घरों में पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं। इस दिन विशेष रूप से मिट्टी के नए बर्तनों का उपयोग करने की परंपरा है। पूड़ी, बड़ा, रोटी और अन्य पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
घर के सभी सदस्य एक साथ भोजन करते हैं, जिससे पारिवारिक एकता और प्रेम को बल मिलता है। यह परंपरा पुरानी पीढ़ियों से चली आ रही है और इसे आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है।
रंगों और संगीत का अद्भुत उत्सव
छत्तीसगढ़ में होली सिर्फ रंग खेलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोक संगीत और नृत्य का उत्सव भी है। गांवों में ढोल, मंजीरा और नगाड़ों की धुनों पर पारंपरिक होली गीत गाए जाते हैं। लोक कलाकार समूह में नृत्य और गायन कर माहौल को और भी उल्लासमय बना देते हैं।
शहरी क्षेत्रों में भी लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं, मिठाइयां बांटते हैं और दोस्तों-रिश्तेदारों से मिलकर यह पर्व धूमधाम से मनाते हैं।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में होली केवल एक रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक ताने-बाने का प्रतीक है। होलिका दहन से लेकर पारंपरिक पकवानों और होली गीतों तक, यह पर्व समाज में आपसी प्रेम, भाईचारे और खुशी को बढ़ावा देता है।
