क्या तमिलनाडु में तमिल भाषा में मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा होगी अनिवार्य?

चेन्नई: तमिलनाडु में भाषा को लेकर राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन से आग्रह किया कि वे राज्य में मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को तमिल भाषा में उपलब्ध कराएं।

अमित शाह की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब स्टालिन केंद्र सरकार पर “हिंदी थोपने” के आरोप लगा रहे हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि तमिलनाडु को तीन-भाषा नीति लागू करनी होगी, तभी उसे केंद्र सरकार से शिक्षा के लिए ₹2,152 करोड़ की धनराशि मिलेगी।

शुक्रवार को तमिलनाडु के रानीपेट जिले में राजादित्य चोल रिक्रूट्स ट्रेनिंग सेंटर में आयोजित CISF दिवस कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा,
“तमिलनाडु की संस्कृति ने प्रशासनिक सुधार, आध्यात्मिक ऊँचाइयों, शिक्षा और राष्ट्रीय एकता में भारत को मजबूत किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की परीक्षाएं तमिल भाषा में भी दी जा सकें। मैं मुख्यमंत्री स्टालिन से आग्रह करता हूँ कि वे MBBS और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को तमिल भाषा में शुरू करें।”

तमिल भाषा में इंजीनियरिंग शिक्षा पहले भी हो चुकी है शुरू

तमिलनाडु में पहले भी इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को तमिल में शुरू करने की कोशिश की गई थी। 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने अन्ना विश्वविद्यालय में सिविल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तमिल-माध्यम पाठ्यक्रम शुरू किए थे। हालांकि, वर्षों बाद इन पाठ्यक्रमों में छात्रों की संख्या कम होती गई। 2023 में अन्ना विश्वविद्यालय ने 11 कॉलेजों में तमिल-माध्यम इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को निलंबित कर दिया, लेकिन बाद में राज्य सरकार के अनुरोध पर इसे बहाल कर दिया गया। बावजूद इसके, छात्रों की रुचि बेहद कम बनी रही।

तमिलनाडु में मेडिकल शिक्षा को तमिल में शुरू करने का प्रस्ताव भी रखा गया था, लेकिन 2011 में डीएमके सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई।

तीन-भाषा नीति पर तकरार

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत तीन-भाषा फॉर्मूला को लागू करने को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच विवाद लगातार बढ़ रहा है।

शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने डीएमके सरकार पर राजनीतिक नाटक करने का आरोप लगाते हुए कहा,
“तमिलनाडु सरकार यह नहीं सोच सकती कि वे संविधान से ऊपर हैं। जब पूरे देश में यह नीति लागू हो चुकी है, तो तमिलनाडु इसका विरोध क्यों कर रहा है?”

धर्मेंद्र प्रधान की इस टिप्पणी पर तमिलनाडु की सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी।

मुख्यमंत्री स्टालिन ने इसे “ब्लैकमेल” करार देते हुए प्रधान को चुनौती दी कि वे संविधान में ऐसा कोई प्रावधान दिखाएं, जो तीन-भाषा नीति को अनिवार्य बनाता हो। उन्होंने कहा,
“दिल्ली से कोई हमें आदेश नहीं दे सकता। जो भी तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की कोशिश करता है, वह या तो चुनाव हार जाता है या बाद में डीएमके के साथ खड़ा होने पर मजबूर हो जाता है।”

स्टालिन ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि “ब्रिटिश उपनिवेशवाद की जगह अब हिंदी उपनिवेशवाद ले रहा है।” उन्होंने चुनौती दी कि यदि भाजपा में हिम्मत है, तो वह 2026 के विधानसभा चुनावों में हिंदी को अपने मुख्य एजेंडे के रूप में पेश करके दिखाए।

क्या तमिल में मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा को मिलेगा बढ़ावा?

अब सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री स्टालिन अमित शाह की इस मांग पर कोई ठोस कदम उठाएंगे या इसे राजनीतिक दबाव के रूप में देखेंगे? क्या तमिलनाडु में फिर से तमिल-माध्यम इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा शुरू होगी, या यह विवाद सिर्फ राजनीति तक सीमित रहेगा? आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और घमासान मचने की पूरी संभावना है।

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