केंद्रीय कैबिनेट ने गुरुवार को “वन नेशन, वन इलेक्शन” (एक राष्ट्र, एक चुनाव) बिल को मंजूरी दे दी है। इस कदम का उद्देश्य देश में चुनाव प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाना है। जल्द ही इस फैसले को लागू करने के लिए एक व्यापक विधेयक संसद में पेश किया जाएगा।
सर्वसम्मति बनाने की आवश्यकता
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार को इस मुद्दे पर कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक ऐसा विचार है, जो राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर पूरे देश के लाभ के लिए है। उन्होंने इस पहल पर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वसम्मति बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
बदलाव की प्रक्रिया और चुनौतियां
इस पहल को लागू करने के लिए संविधान और चुनाव कानूनों में कई संशोधनों की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही मतदाता सूचियों के मानकीकरण जैसे कई ढांचागत बदलावों की भी जरूरत पड़ेगी। सरकार ने इन बदलावों को लागू करने के लिए रोडमैप तैयार किया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव समय लेने वाला होगा।
पुराना विचार, नई दिशा
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विचार नया नहीं है। 1983 में चुनाव आयोग ने पहली बार इस विचार की संभावनाओं पर चर्चा की थी। 1999 में लॉ कमीशन की 170वीं रिपोर्ट में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दिया गया था। 2015 में संसद की स्थायी समिति ने इस पर एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें इस विचार के फायदों के साथ विपक्ष द्वारा उठाई गई चिंताओं का भी उल्लेख किया गया।
संभावित लाभ
विशेषज्ञों का कहना है कि एक साथ चुनाव से चुनावी खर्च में कमी आएगी और प्रशासनिक दक्षता में सुधार होगा। साथ ही, देश में बार-बार चुनाव होने से पड़ने वाले व्यवधान को भी कम किया जा सकेगा।