कर्नाटक के कोप्पल जिले के गंगावती तालुक के मारकुंबी गांव में 2014 में दलितों पर हुए अत्याचार और भेदभाव के मामले में गुरुवार को सत्र न्यायालय ने 98 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके साथ ही तीन अन्य को पांच साल की कैद की सजा दी गई। इनमें से तीन लोगों को हल्की सजा इसलिए मिली क्योंकि उनके खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता था।
सूत्रों के अनुसार, यह फैसला देश में जाति-आधारित हिंसा के किसी मामले में सुनाई गई सबसे बड़ी सजा में से एक है। सरकारी वकील अपर्णा बुंदी ने बताया कि इस मामले में कुल 117 आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया था। यह मामला 29 अगस्त, 2014 की पुलिस शिकायत से शुरू हुआ था, जिसमें दलितों पर भीड़ द्वारा हमला करने और उनके झोपड़ों को जलाने की घटना दर्ज की गई थी। इस घटना से पहले दलितों को नाई की दुकानों और भोजनालयों में प्रवेश से रोका जा रहा था।
घटना के बाद मारकुंबी गांव में पुलिस की कड़ी निगरानी तीन महीने तक रखी गई। राज्य की दलित अधिकार समिति ने बेंगलुरु तक मार्च का आयोजन किया था और गंगावती पुलिस स्टेशन का घेराव भी कई दिनों तक चला। इस मामले की सुनवाई के दौरान 16 आरोपियों की मौत हो गई। जिन दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, उन्हें 2,000 से 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है और उन्हें बल्लारी केंद्रीय जेल में रखा गया है।