राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने “हिंदू समाज” से जातीय विभाजनों से ऊपर उठने और दलितों तथा वंचित समुदायों का समर्थन करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि देश को जाति और समुदाय के आधार पर तोड़ने का प्रयास एक “डीप स्टेट” कर रहा है, जिसमें कुछ राजनीतिक दल अपने “स्वार्थी हितों” के लिए इस एजेंडा को बढ़ावा दे रहे हैं।
नागपुर में विजयादशमी के अवसर पर अपने वार्षिक संबोधन में भागवत ने कहा, “हमारी विविधता इतनी अधिक हो गई है कि हमने अपने संतों और देवताओं को भी बांट दिया है। वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि बस्तियों में ही क्यों मनाई जाती है? वाल्मीकि ने रामायण पूरे हिंदू समाज के लिए लिखी थी, तो वाल्मीकि जयंती और रविदास जयंती को सभी को मिलकर मनाना चाहिए।”
उन्होंने सार्वजनिक स्थानों जैसे मंदिर, पेयजल सुविधाओं और श्मशानों में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने की बात कही। भागवत ने कहा, “सामाजिक सौहार्द और विभिन्न समुदायों के बीच आपसी सद्भावना एक स्वस्थ और सक्षम समाज की नींव है। यह लक्ष्य सिर्फ प्रतीकात्मक कार्यक्रमों से हासिल नहीं किया जा सकता। समाज के सभी वर्गों के बीच मित्रता होनी चाहिए। भाषा, संस्कृति और भोजन अलग हो सकते हैं, लेकिन व्यक्तियों और परिवारों के बीच मित्रता समाज में सौहार्द का वातावरण बनाएगी।”
उन्होंने कमजोर समुदायों की चुनौतियों को पहचानने की जरूरत पर जोर दिया और एक बैठक का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे वाल्मीकि समुदाय के प्रतिनिधियों ने उनके सामने अपने बच्चों के लिए स्कूलों की कमी की चिंता जाहिर की। इस पर राजपूत समुदाय के सदस्यों ने समर्थन करते हुए अपने स्कूल में 20% वाल्मीकि बच्चों को बिना किसी शुल्क के दाखिला दिया।
मोहन भागवत का यह संबोधन 2024 लोकसभा चुनावों के बाद आया है, जिसमें भाजपा साधारण बहुमत से पीछे रह गई थी और सिर्फ 240 सीटें जीत पाई थी।