बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत वितरित किए जा रहे फोर्टिफाइड चावल के साथ एक परामर्श शामिल करने पर चार सप्ताह के भीतर निर्णय ले। यह परामर्श विशेष रूप से थैलेसीमिया और सिकल सेल रोगियों के लिए अनिवार्य है, जैसा कि खाद्य सुरक्षा और मानक (फोर्टिफिकेशन ऑफ फूड्स) विनियम, 2018 में निर्दिष्ट किया गया है।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने सरकार से 30 नवंबर 2023 को गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर कार्रवाई करने को कहा। इन सिफारिशों को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट यह जनहित याचिका (PIL) राजेश कृष्णन और अन्य द्वारा दायर की गई थी, जिसमें खाद्य सुरक्षा और मानक (फोर्टिफिकेशन ऑफ फूड्स) विनियम, 2018 के क्लॉज 7(4) के पालन की मांग की गई थी। इस क्लॉज के अनुसार, थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग जैसी स्थितियों वाले मरीजों के लिए आयरन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित है।
इस मामले में शीर्ष अदालत का निर्णय इन विशेष परिस्थितियों वाले मरीजों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि फोर्टिफाइड चावल में आयरन की मात्रा अधिक होती है जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। सरकार के निर्णय से इन मरीजों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी और उन्हें उचित परामर्श प्रदान किया जाएगा।
यह निर्णय सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कल्याणकारी योजनाओं के तहत वितरित किए जा रहे खाद्य पदार्थ सभी लाभार्थियों के लिए सुरक्षित हों। यह भी आवश्यक है कि सरकार विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों का पालन करते हुए उचित कदम उठाए ताकि थैलेसीमिया और सिकल सेल रोगियों को कोई हानि न पहुंचे।