नई दिल्ली। ज्ञानवापी मामले में ट्रायल कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामला जिला जज को ट्रांसफर किया। ट्रायल कोर्ट तय करेगा कि हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं। मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने आदेश में कहा, ‘वाराणसी जिला जज मामले की सुनवाई करेंगे, 17 मई को दिया गया अंतरिम आदेश 8 हफ्तों तक लागू रहेगा। वजू की व्यवस्था जिलाधिकारी कर चुके हैं। डीएम एक बार याचिकाकर्ताओं से भी मशविरा कर समुचित इंतजाम करें। वाराणसी जिला कोर्ट के 16 मई के आदेश पर हमारा 17 मई का आदेश प्रभावी होगा। जिला जज के निपटारे तक 17 मई का अंतरिम आदेश जारी रहेगा फिर पक्षों के पास कानूनी उपचार के लिए 8 हफ्ते का समय रहेगा।’
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को ‘शिवलिंग’ को संरक्षित करने और नमाज की इजाजत दी थी। अब ‘शीर्ष अदालत’ में ग्रीष्मावकाश के बाद जुलाई के दूसरे हफ्ते में सुनवाई होगी। जिला जज पहले मुस्लिम पक्ष की अर्जी पर फैसला करेंगे कि ये वाद 1991 ऐक्ट का उल्लंघन है या नहीं। तीन जजों, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में आज यह सुनवाई की।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि पहले 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के उल्लंघन बताने वाली मुस्लिम पक्ष की अर्जी पर सुनवाई हो, तब तक सुप्रीम कोर्ट का शिवलिंग क्षेत्र को सुरक्षित रखने और नमाज न रोकने के आदेश जारी रह। मुस्लिम पक्षकारों के वकील हुजैफा अहमदी ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि इसे सिर्फ एक मामले के नजरिए से न देखें। इसका असर चार-पांच मस्जिदों के मामले में पड़ेगा। ये बड़ी पब्लिक शरारत है। ये धार्मिक इमारत के चरित्र को बदलने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि अब तक जो भी आदेश ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए हैं वो माहौल खराब कर सकते हैं। कमीशन बनाने से लेकर अब तक जो भी आदेश आए हैं अब तक जो भी आदेश ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए हैं वो माहौल खराब कर सकते हैं। कमीशन बनाने से लेकर अब तक जो भी आदेश आए हैं उसके जरिए दूसरे पक्षकार गड़बड़ कर सकते है। स्टेटस को यानी यथा स्थिति बनाए रखी जा सकती है। पांच सौ साल से उस स्थान को जैसे इस्तेमाल किया जा रहा था उसे बरकरार रखा जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हमने जो महसूस किया, वह सबसे पहले हम आदेश 7 नियम 11 पर निर्णय लेने के लिए कहेंगे। जब तक यह तय नहीं हो जाता है कि हमारा अंतरिम आदेश संतुलित तरीके से लागू रहेगा।’
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह की कमीशन रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि चुनिंदा लीक बंद होने चाहिए। प्रेस में बातें लीक हो रही हैं। इसे कोर्ट में जमा करना था। कोर्ट ही इसे खोले। हमें जमीन पर संतुलन और शांति की भावना की जरूरत है। एक हद तक हीलिंग टच की जरूरत है। हम देश में संतुलन की भावना को बनाए रखने के लिए एक संयुक्त मिशन पर हैं। जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, ‘यदि कल आपके आवेदन की अनुमति दी जाती है तो आप जिन आदेशों को चुनौती दे रहे हैं, वे सभी रद्द हो जाएंगे। इस पर हुज़ेफ़ा अहमदी ने कहा, लेकिन इस बीच क्या हो रहा है। इस आदेश का इस्तेमाल सिर्फ इस संपत्ति के संबंध में नहीं बल्कि देश की सभी मस्जिदों में किया जा रहा है। यदि इसे बढ़ने दिया जाए तो कल कोई और कहेगा कि मस्जिद थी मंदिर। फिर से कमीशन और रिपोर्ट लीक करना जो सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ देगा। इसे केवल एक मामले के रूप में नहीं बल्कि व्यापक प्रभाव के रूप में देखें।
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा, ‘हमें नियम कानून से चलना है। हम मामले में सीधे नहीं कूद सकते। हम ये नहीं कह सकते कि हम तय करेंगे कि क्या ये वाद सुनवाई लायक है या नहीं है। हुजेफा अहमद ने कहा कि हमारी याचिका कमीशन की नियुक्ति के खिलाफ है। इस प्रकार की शरारत को रोकने के लिए ही 1991 का अधिनियम बनाया गया था। कहानी बनाने के लिए रिपोर्ट को चुनिंदा रूप से लीक किया गया है। मामले को अगर निचली अदालत को भेजा जाता है तो ज्ञानवापी मस्जिद पर यथस्थिति को बनाए रखा जाए। अव्वल तो सर्वे के लिए कमीशन बनाया जाना ही असंवैधानिक है। यही नहीं] रिपोर्ट को लीक किया जा रहा है। हमें मौका दिया जाए कि एक नैरेटिव सेट किया जा रहा है ये मामला इतना आसान नहीं है। परिसर में यथास्थिति तो बीते 500 साल से है। मेरी मांग है कि यदि मामला वाराणसी कोर्ट जाता है तो भी वही यथास्थिति बनाए रखी जाए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘समुदायों के बीच भाईचारा और शांति हमारे लिए सबसे ऊपर है। हमारा अंतरिम आदेश जारी रह सकता है और शांति बनी रहेगी। पहले ट्रायल कोर्ट को मुस्लिम पक्ष की 1991 ऐक्ट के उल्लंघन की अर्जी पर सुनवाई करने दें।’
इससे पहले, सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मामले की गंभीरता को देखते हुए हमें लगता है कि मामले को जिला स्तर के जज को सुनना चाहिए। ये मामला मेच्योर हाथों में होना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि हमारे पास 3 सुझाव हैं। 1 ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित आवेदन पर हम कह सकते हैं कि निचली अदालत उस आवेदन का निपटारा कर सकती है। हम मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं करेंगे। 2 हमने एक अंतरिम आदेश पारित किया था और जो ट्रायल कोर्ट के तहत जारी रह सकता है, उस आवेदन का निपटारा करता है। 3. ये जटिल और संवेदनशील मामला है। हम सोचते हैं कि मुकदमे की सुनवाई ट्रायल जज के बजाय जिला जज द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि बेहतर है अगर एक और अनुभवी हाथ इसे सुनें।