राम जन्मभूमि की दोबारा खुदाई की मांग शीर्ष अदालत ने की खारिज, याचिकाकर्ताओं पर लगाया 1-1 लाख रुपये का हर्जाना

नई दिल्ली। राम जन्मभूमि की नए सिरे से खुदाई की मांग कर रहे याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने अगंभीर करार देते हुए ठुकरा दिया. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर हर्जाना भी लगाया. याचिकाओं में अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए जमीन को समतल किए जाने के दौरान मिली कलाकृतियों के बौद्ध संस्कृति से जुड़े होने की बात कही गयी थी. इसे आधार बनाते हुए याचिकाकर्ताओं ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे की निगरानी में नए सिरे से जगह की खुदाई करवाने की मांग की थी.
सम्यक विश्व संघ नाम की संस्था के सतीश संभारकर समेत 4 सदस्यों और डॉ अंबेडकर बोधिकुंज फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाओं में कहा गया था कि 2003 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राम जन्मभूमि के आसपास की जगह की खुदाई करवाई थी. लेकिन जहां पर मुख्य इमारत थी, उसकी खुदाई नहीं हुई थी. 11 मई को जगह को समतल करने के दौरान कई पुरानी कलाकृतियां मिली हैं. यह बौद्ध धर्म से जुड़ी आकृतियां मालूम पड़ती हैं. इसलिए, इन सभी चीजों को संरक्षित करने की जरूरत है. उन पर विस्तृत शोध भी किया जाना चाहिए, ताकि यह पता लग सके कि इनका इतिहास क्या है. याचिका में यह मांग भी की गई थी कि राम मंदिर निर्माण के लिए दी गयी जगह की नए सिरे से खुदाई करवाई जाए. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को इसके लिए आदेश दिया जाए. खुदाई के दौरान याचिका दायर करने वाली संस्था के सदस्यों को भी वहां मौजूद रहने दिया जाए.
मामला आज जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगा. जजों ने याचिका पर हैरानी जताई और कहा कि याचिका के पीछे कोई ठोस आधार मालूम नहीं पड़ता है. याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि हम तो वहां पर मिली कलाकृतियों को संरक्षित करने की मांग कर रहे हैं. कोर्ट को उसका आदेश देना चाहिए.
इस पर जजों ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले पर फैसला दे चुका है. सरकार उसका पालन कर रही है. आपकी याचिका को देख कर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुक्ति पाने के लिए इस तरह की याचिका की आड़ ली जा रही है. इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है. लेकिन यह एक बेहद अगंभीर याचिका है, जो सुनवाई के लायक नहीं है.”
सुनवाई के दौरान मौजूद सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि कोर्ट को इस तरह की याचिका दायर कर अदालत का समय बर्बाद करने वालों से हर्जाना लेना चाहिए. इससे सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोनों याचिकाकर्ताओं पर 1-1 लाख का हर्जाना लगा दिया. कोर्ट ने 1 महीने के भीतर इसका भुगतान करने का आदेश दिया है.

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