नई दिल्ली, 30/04/2025। श्रमिकों की ऐतिहासिक लड़ाई की विरासत को याद करते हुए, इस साल का अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस एक सामाजिक और राजनीतिक तूफान के पूर्व संकेत जैसा प्रतीत हो रहा है। 1886 के शिकागो के हेमार्केट स्क्वायर में उठी आठ घंटे काम की मांग अब फिर से वैश्विक पूंजीवादी ताकतों के निशाने पर है, और इस बार हालात कहीं ज़्यादा खतरनाक और दमनकारी हैं।
पूंजीवाद का वर्तमान संकट, नवउदारवादी नीतियों की विफलता और वैश्वीकरण की पोल खुलने के बाद दुनिया भर में असमानता, बेरोजगारी और श्रमिक अधिकारों का हनन चरम पर है। भारत में भी, नवफासीवादी शासन के अंतर्गत मजदूरों की स्थिति दिनोंदिन बदतर होती जा रही है। ठेका मजदूरी, अमानवीय कार्यदशाएं, महिला श्रमिकों का तिहरा शोषण, और ट्रेड यूनियन अधिकारों का दमन — यह सब आज की वास्तविकता बन चुके हैं।

इन हालातों के खिलाफ देश की दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और अन्य संगठनों ने 20 मई 2025 को देशव्यापी आम हड़ताल का आह्वान किया है। यह सिर्फ एक दिन की हड़ताल नहीं, बल्कि एक नई चेतना और प्रतिरोध की शुरुआत है। यह हड़ताल केवल पूंजीवादी व्यवस्था की मुखालफत नहीं करेगी, बल्कि जनता को उनके असली शत्रु की पहचान कराने का आंदोलन भी बनेगी।
आज के सूचना युग में, जब मीडिया का बड़ा हिस्सा सत्ता और पूंजी के साथ खड़ा है, तब यह आंदोलन चेतना की लड़ाई भी बन गया है। फूट डालो और राज करो की राजनीति, धार्मिक उन्माद, और भीतरी दुश्मनों की गढ़ी गई कहानियों के बीच, मेहनतकशों को अपने हक और असली दुश्मन की पहचान करनी होगी।
इतिहास गवाह है — अमावसें चिरकालीन नहीं होतीं। जब समाज एकजुट होकर उठ खड़ा होता है, तब अंधकार की सबसे लम्बी रात भी सुबह में बदल जाती है। 2025 का मई दिवस यही संदेश लेकर आया है — अब वक्त है नई सुबह की तैयारी का।
