दुर्ग। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के धमधा क्षेत्र में एक ऐसा मंदिर बनाया जा रहा है, जो अपनी अनोखी संरचना के लिए चर्चा का केंद्र बन गया है। इस मंदिर का निर्माण न तो ईंटों से किया जा रहा है और न ही पत्थरों से, बल्कि इसे मिट्टी के ज्योति कलश और दीपों से तैयार किया जा रहा है।
दुर्ग जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर धमधा-खैरागढ़ मार्ग पर स्थित इस मंदिर में भगवान हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इसे बनाने का मुख्य उद्देश्य पूजन सामग्री, विशेषकर ज्योति कलश और दीपों का सम्मान करना है।
क्यों शुरू हुआ यह अनोखा निर्माण?
यह परंपरा नवरात्रि और दीपावली जैसे त्योहारों से जुड़ी है। इन त्योहारों के दौरान श्रद्धालु कलश में दीप जलाकर पूजा करते हैं और बाद में इन कलशों को तालाब या नदी में विसर्जित कर देते हैं। विसर्जन के बाद ये कलश बेकार समझे जाते हैं और कई बार इन पर लोगों के पैर लग जाते हैं, जिससे पूजन सामग्रियों का अनादर होता है।
इस अनादर को रोकने और बेकार पड़े ज्योति कलशों को उपयोग में लाने के लिए मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली। पिछले 14 साल से यह निर्माण कार्य जारी है। अब तक इस मंदिर में एक लाख से ज्यादा ज्योति कलश और दीप लगाए जा चुके हैं। मंदिर की ऊंचाई वर्तमान में लगभग 50 फीट तक पहुंच चुकी है।
श्रद्धालुओं की बढ़ रही आस्था
मंदिर निर्माण में लोगों की आस्था लगातार बढ़ रही है। श्रद्धालु अपनी ओर से मिट्टी के कलश और दीप दान कर रहे हैं। इस पवित्र कार्य में दंतेवाड़ा की मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ की मां बमलेश्वरी और रतनपुर की मां महामाया मंदिर से मिट्टी के कलश लाकर लगाए गए हैं।
यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अद्भुत धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर बनकर उभरेगा। इसका अनोखा निर्माण इसे न केवल स्थानीय, बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चित बना सकता है।