दुर्ग (छत्तीसगढ़)। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टर कांफ्रेंस के दौरान बांस के प्रमोशन के लिए कार्य करने के निर्देश दिए थे। दुर्ग जिले में बांस के ट्री गार्ड को स्वसहायता समूहों के माध्यम से बनवाकर उनकी आय भी बढ़ाई जा रही है और न्यूनतम लागत में पौध संरक्षण का उद्देश्य भी पूरा हो पा रहा है। यह छोटी सी शुरूआत हुई है लेकिन बांस को लेकर किया जा रहा यह काम बहुत आगे जाएगा क्योंकि बांस को पेड़ की श्रेणी से हटाकर घास की श्रेणी में लाये जाने से इसके व्यावसायिक दोहन की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं। इससे बांस के पौधे भी लगाए जा सकेंगे और बांस के काम में लगे बंसोड परिवारों को भी लाभ होगा। सांकरा स्थित आजीविका केंद्र में यह कार्य बड़े पैमाने पर हो रहा है। यहां स्वसहायता समूहों की तीस महिलाएं बांस के ट्री गार्ड बनाने का काम कर रही हैं। वे एक हजार ट्री गार्ड भिलाई नगर निगम को उपलब्ध करा चुकी हैं। यह केवल शुरूआत है। अभी जिला पंचायत द्वारा बड़े पैमाने पर पौधरोपण में इनके बनाये गए ट्री गार्ड का इस्तेमाल हो पाएगा। जिला पंचायत द्वारा इन महिलाओं को दस दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया था।
जिला पंचायत सीईओ सच्चिदानंद आलोक ने बताया कि हमारा लक्ष्य बड़े पैमाने पर पौधरोपण करना है। हम सामूहिक फलोद्यान भी तैयार कर रहे हैं तथा अन्य तरह के पौधे लगा रहे हैं। इसमें वृहत्तर लाभ हो और लागत बिल्कुल कम हो, इस उद्देश्य से बांस के ट्री गार्ड उपयोगी साबित हुए। यह प्रकृति का ही उपहार है और प्रकृति में ही काम आ जाएगा। इसके साथ ही बांस के उत्पाद को लेकर महिलाओं की ट्रेनिंग भी दी जा चुकी है। चूंकि शासन के लिए पौधरोपण प्राथमिकता है अतः इन महिलाओं के लिए लगातार आय के अवसर बने रहेंगे। जय मां लक्ष्मी स्वसहायता समूह की अध्यक्ष नीरा सिंगौर ने बताया कि हम लोगों को सेरीखेड़ी में प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण प्राप्त करते ही हमें काम मिल गया। पिछले वर्ष धमधा ब्लाक में भी स्वसहायता समूहों की महिलाओं ने बड़ी मात्रा में ट्री गार्ड बनाये जिनका उपयोग हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट ने किया था।
महिलाओं ने कहा कि अच्छा काम मिला है। अब प्रकृति को भी सहेजेंगे। प्रशिक्षित होने भी कोई खर्च नहीं करना पड़ा। काम के लिए भी घूमना नहीं पड़ा। काम भी मिल गया और आर्डर भी मिलते चले गए। पहले थोड़ा समय लगता था, अब ट्रेंड हो गए तो बहुत जल्दी करने लगे हैं। इतनी तेजी से आर्डर मिलेंगे, सोचा नहीं था।