सुकमा: छत्तीसगढ़ के पूर्व सीपीआई विधायक मनीष कुंजाम ने राज्य सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी ब्यूरो (ACB) की कार्रवाई को लेकर बड़ा बयान दिया है। 7 करोड़ रुपये की कथित गड़बड़ी के मामले में उनके घर सहित सुकमा जिले में कई ठिकानों पर हाल ही में ACB की छापेमारी हुई थी।
लेकिन कुंजाम का दावा है कि वे इस घोटाले के व्हिसलब्लोअर हैं, न कि आरोपी। उन्होंने आरोप लगाया है कि उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि उन्होंने भाजपा सरकार के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई और खनन व आदिवासी मुद्दों पर लगातार संघर्ष किया।

“ACB को मुझ पर इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि मैंने इस घोटाले को उजागर किया,” कुंजाम ने कहा। उन्होंने बताया कि ACB अधिकारी उनके घर से कुछ नहीं ले गए, सिर्फ दो मोबाइल फोन और उनकी निजी डायरी जब्त की, और उनका हैश वैल्यू नहीं दिया गया, जो सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
बोनस घोटाले से जुड़े हैं आरोप
यह मामला 2021 और 2022 में तेंदूपत्ता संग्राहकों को मिलने वाले बोनस की गड़बड़ी से जुड़ा है। कुंजाम ने जनवरी में की गई अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि बोनस का वितरण नहीं हुआ, जिसके आधार पर एक वन मंडल अधिकारी (DFO) को निलंबित भी किया गया था।
कुंजाम ने कहा कि उन्होंने इसके बाद भी अपराधात्मक कार्रवाई की मांग को लेकर प्रदर्शन जारी रखा और संग्राहकों को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे।
संघर्षशील पृष्ठभूमि से निकले नेता
रामाराम गांव के एक गरीब परिवार में जन्मे मनीष कुंजाम की परवरिश एकल मां ने की। 1984 में SFI (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) से जुड़कर उन्होंने राजनीति में कदम रखा और तेंदूपत्ता व अन्य मुद्दों पर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1987 में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
1990 और 1993 में वे सीपीआई टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतकर कोंटा विधायक बने। इसके बाद वे लगातार कांग्रेस के कावासी लखमा से चार बार हारे (2003, 2013, 2018, 2023)।
बस्तर के मुद्दों पर मुखर
2012 में उन्होंने सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन की नक्सली रिहाई के समय मध्यस्थता में अहम भूमिका निभाई थी। अगले साल उन्होंने बस्तर में सैन्यीकरण के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन किया और छठी अनुसूची लागू करने की मांग की।
वे अदिवासी महासभा के सक्रिय सदस्य रहे और सलवा जुडूम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने वालों में शामिल थे।
नई राह, नया संगठन
जनवरी 2024 में उन्होंने सीपीआई के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया, यह कहते हुए कि पार्टी ने उन्हें नवंबर 2023 विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया। सितंबर 2023 में उन्होंने बस्तरिया राज मोर्चा नाम से एक नया सामाजिक संगठन बनाया, जिसके वे संयोजक हैं।
इस संगठन की मांग है कि बस्तर को अलग राज्य का दर्जा मिले और जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों को उनका अधिकार दिलाया जाए।
