रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में नाबालिगों की जमानत याचिका पर विचार करते समय ट्रायल और अपीलीय अदालतों की भूमिका को स्पष्ट किया है। यह आदेश दो नाबालिगों द्वारा दायर जमानत याचिका पर आया, जो एक हत्या के मामले में आरोपी हैं।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा ने जमानत आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि नाबालिगों को जमानत देने के मामले में अदालतों को “उदार और व्यावहारिक दृष्टिकोण” अपनाना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही उनकी रिहाई से संभावित जोखिमों पर भी गंभीरता से विचार करना आवश्यक है।

हाईकोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक कोर्ट), रायपुर ने “2015 के अधिनियम की धारा 12 की कानूनी व्यवस्था पर पूरी तरह ध्यान नहीं दिया।” इस धारा के तहत सामाजिक जांच रिपोर्ट (Social Investigation Report) का मूल्यांकन अनिवार्य है, जिससे यह तय किया जा सके कि किसी नाबालिग की रिहाई उसे नैतिक, शारीरिक या मानसिक खतरे में डाल सकती है या नहीं।
इसके अलावा, अदालत ने इस तथ्य को भी उजागर किया कि यदि नाबालिगों की रिहाई से वे जाने-माने अपराधियों के संपर्क में आते हैं तो यह उनकी जमानत याचिका को अस्वीकार करने का वैध आधार हो सकता है।
न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन जरूरी
हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया है कि नाबालिगों की जमानत पर निर्णय लेते समय अदालतों को संवेदनशीलता और कानूनी प्रावधानों के बीच संतुलन बनाकर निर्णय लेना चाहिए।
