रायपुर (छत्तीसगढ़)। हिंदी आलोचना के महत्वपूर्ण स्तंभ मैनेजर पांडेय के निधन पर रायपुर जन संस्कृति मंच की ओर से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन करते हुए श्रद्धांजलि दी गई। स्थानीय वृंदावन हॉल में संपन्न हुए आयोजन का संचालन करते हुए जसम रायपुर के अध्यक्ष आनंद बहादुर ने कहा कि हिन्दी आलोचना ही नहीं, सम्पूर्ण भारतीय समाज, और भारत सहित दूसरे देशों की साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक चेतना से मैनेजर पांडे का गहरा सरोकार था। एक तरह से वे समस्त मानवता के प्रवक्ता थे। मैनेजर पांडे के जाने से जो समाज को हानि हुई है उसकी भरपाई मुश्किल है, लेकिन जैसा कि वे कहा करते थे कि आदमी चला जाता है लेकिन पूरा आदमी कभी नहीं जाता। उसकी सोच, उसका लेखन और कार्य उसे कई हिस्सों में जिंदा रखता है। मैनेजर पांडेय भी हमारे बीच ज़िंदा रहने वाले है।
युवा आलोचक भुवाल सिंह ठाकुर ने अपने आत्मीय अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि सभी शिक्षकों के बीच उनका आकर्षण इतना जबरदस्त था कि वे हमेशा विद्यार्थियों से बातचीत करते नजर आते थे। बातचीत में वे इतने सरल और सहज थे कि उनकी महानता छिप जाती थी और कोई कल्पना नहीं कर पाता था कि वे कितने महान लेखक और आलोचक थे। मगर जब कोई छात्र पुस्तकालय पहुंचता तो वहां उनका काम बड़े स्तर पर दिखता था। वे शब्दों की विलासिता से अलग शब्दों के कर्म पर यकीन रखते थे। उनके साहित्य में हमें गांव की चौपाल व वहां मौजूद दिल्लगी की झलक मिलती है. वे कहते थे “जो व्यक्ति लोकल होगा, वही व्यक्ति ग्लोबल होगा। वे पहले ऐसे शख्स थे जो रस, छंद, से अलग एक समाजशास्त्रीय नजर से दुनिया को देखते थे। उनकी किताब ‘साहित्य का समाजशास्त्र’ इसकी एक बानगी है।
लेखक और पत्रकार समीर दीवान ने अपने वक्तव्य में कहा कि उनकी एक किताब में मनुस्मृति में जो वर्गवाद है, उसे बतलाया है और वर्णव्यवस्था की तुलना वज्रसूची से की है। उनकी प्रासंगिक बातों को और अधिक मुखरित करने की जरूरत है। उनके विद्यार्थियों को इस ओर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
जसम रायपुर के सचिव मोहित जायसवाल ने कहा कि वे विज्ञान के छात्र होने के बावजूद मैनेजर पांडे के व्यक्तित्व की ओर आकर्षित होते रहते थे। इसी ने उन्हें साहित्य की ओर आने की प्रेरणा दी। मैनेजर पांडे के दिवंगत होने से साहित्य जगत ही नहीं पूरे भारतीय समाज का नुकसान हुआ है। उनका लिखा हुआ समाज व युवा पीढ़ी का निरंतर मार्गदर्शन करता रहेगा। आज के युवाओं को मैनेजर पांडे के व्यक्तित्व और कृतित्व से सीखने की जरूरत है।
मैनेजर पांडेय की छात्रा रही पूनम ने कहा कि मेरे मन में स्मृति का ज्वालामुखी मन में फूट पड़ा है। जहां भी हमारे गुरू का लेक्चर होता था, हम वहां पहुंच जाते थे। उनका व्यवहार विद्यार्थियों के साथ बहुत ही सहज व सरल था। वे कहते थे साहित्य को सिर्फ पढ़ना ब्लकि उसे जीना चाहिए।
प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि आलोक वर्मा ने कहा कि मैनेजर पांडेय का जीवन साहित्य के आलोक में संपूर्ण साहित्य की सामाजिकता को लेकर सचेत रहा। वाम चेतना में दो तरह की वैचारिकी देखी जाती है, एक सैद्धांतिक व दूसरा व्यावहारिक. वे व्यावहारिक पक्ष के व्यक्ति थे। वे जेएनयू में रहते हुए छात्र आंदोलनों में सक्रिय रहे। जब हमारे देश में नक्सलबाड़ी आंदोलन हुआ तो उस दौर के साहित्य को केन्द्र में लाते हुए उन्होंने कई प्रमुख कार्य किए। उनके प्रिय कवि नागार्जुन थे जिनके संग्रह का उन्होंने प्रकाशन किया। अपनी किताब की भूमिका में उन्होंने समाज का संकट, सोवियत संघ के संकट व विदेशी लेखों के अनुवादों को स्थान दिया था। प्रचुर लेखन के बाद भी वे कभी विवादास्पद नहीं हुए। उन्होंने काफी विपुल लेखन किया है। उनकी समग्र रचनावली लाने की जरूरत है। एक बड़ा व्यक्ति जाता है तो बहुत कुछ साथ ले जाता है और बहुत कुछ छोड़ जाता है, उस कृतित्व को हमें सामने लाने की जरूरत है।
रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार रंगकर्मी और अपना मोर्चा डॉट कॉम के संचालक राजकुमार सोनी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रो. पांडे सिर्फ साहित्य के आलोचक नहीं थे। उन्होंने उन तमाम विषयों पर भी कलम चलाई जिस पर लोग लिखने से बचते थे। उन्होंने हमेशा बुद्धि और वैज्ञानिक चेतना को संपन्न करने का काम किया। वे सिर्फ कविताओं या कहानियों के ही आलोचक नहीं थे बल्कि हिन्दी समाज के आलोचक थे। उनमें क्या गजब का आकर्षण था कि लोग उनका लेक्चर सुनने के लिए इंतजार करते थे।
साहित्य और समाज के इस महान युग दृष्टा आलोचक और गुरु को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट के मौन के पश्चात श्रद्धांजलि सभा का समापन हुआ। कार्यक्रम में मधु वर्मा, वसु गंधर्व, इन्द्र कुमार राठौर, अजुल्का सक्सेना, रामचंद्र सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद रहे।