रायपुर (छत्तीसगढ़)। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि केन्द्र सरकार का एक राष्ट्र-एक बाजार अध्यादेश किसानों के हित में नहीं है। इससे मंडी का ढांचा खत्म होगा, जो किसानों और व्यापारियों दोनों के लिए लाभप्रद नहीं है। अधिकांश कृषक लघु सीमांत है, इससे किसानों का शोषण बढ़ेगा। उनमें इतनी क्षमता नहीं कि राज्य के बाहर जाकर उपज बेच सके। किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम में किए गए संशोधन से आवश्यक वस्तुओं के भंडारण एवं मूल्य वृद्धि के विरूद्ध कार्यवाही करने मे कठिनाई होगी। कान्ट्रैक्ट फार्मिग से निजी कंपनियों को फायदा होगा। सहकारिता में निजी क्षेत्र के प्रवेश से बहुराष्ट्रीय कंपनिया, बड़े उद्योगपति सहकारी संस्थाओं पर कब्जा कर लेंगे और किसानों का शोषण होगा।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि आज केन्द्र सरकार द्वारा विश्वव्यापी कोरोना संकट के समय के अवसर को अच्छा अवसर मानते हुए कृषकों के शोषण के लिए चार अध्यादेश लाया गया है। जिसके तहत एक राष्ट्र- एक बाजार के तहत एक्ट में संशोधन किया गया है। इसमें किसानों को देश के किसी भी हिस्से में अपनी उपज बेचने की छूट दी गई है। इसमें किसान और व्यापारी को उपज खरीदी-बिक्री के लिए राज्य की मंडी के बाहर टैक्स नहीं देना होगा अर्थात मंडी में फसलों की खरीदी-बिक्री की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी और निजी मंडियों को बढ़ावा मिलेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी तरह आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन, खाद पदार्थों के उत्पादन और बिक्री को नियंत्रण मुक्त किया गया है। तिलहन, दलहन, आलू, प्याज जैसे उत्पादों से स्टाक सीमा हटाने का फैसला लिया गया है। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिग और सहकारी बैंकों में निजी इक्विटी की अनुमति का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा स्पष्ट मत है कि कोरोना आपदा के समय में केन्द्र सरकार द्वारा जो अध्यादेश लाए गए हैं, उसका बहुत बुरा असर होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हम पुरजोर तरीके से केन्द्र सरकार के किसान विरोधी कानूनों का विरोध करेंगे। उन्होंने कहा कि आज देश के सामने दो मॉडल स्पष्ट हैं कि आपदा में जनसेवा के माध्यम से विश्वास जगाते हुए सबको साथ लेकर चलने वाला छत्तीसगढ़ी मॉडल और दूसरा आपदा को मनमानी करने का अवसर मानने वाला केन्द्र सरकार का मॉडल। उन्होंने कहा कि हमें अपने छत्तीसगढ़ी मॉडल पर भरोसा है, जिसने आपदा के समय में जरूरतमंदों को सीधे मदद पहुंचाने के साथ ही नवगठित जिला गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही के विकास को नया आयाम दिया है।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज अपने निवास कार्यालय से वीड़ियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले को 332.64 करोड़ के विकास कार्यों की सौगात देने के बाद कार्यक्रम को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरण दास महंत ने की। कार्यक्रम में सभी मंत्रीगण, लोकसभा सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत एवं अन्य जनप्रतिनिधि कार्यक्रम में वीड़ियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि आम जनता के हितों का संरक्षण एवं उनकी खुशहाली हमारी सरकार की प्राथमिकता है। यह प्रेरणा हमें विरासत में मिली है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी की नीतियों और आदर्शों का अनुसरण करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार गरीबों, मजदूरों, किसानों और आदिवासियों के बेहतरी के लिए कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि कोरोना आपदा काल में छत्तीसगढ़ सरकार ने लोगों को अपने जनहितैषी कार्यक्रमों एवं योजनाओं के जरिए 70 हजार करोड़ रूपए की सीधे मदद दी हैं।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि आज देश और दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है। बहुत से देशों की राष्ट्रीय सरकारों ने किसानों, गरीबों और आपदा पीड़ितों के प्रति सहानुभूति का रवैया रखते हुए बीमारी के नियंत्रण में अच्छी सफलता हासिल की है। लेकिन हमारे देश ने जिस तरह से सर्जिकल स्ट्राइक के तरीके से नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन किया गया, उससे लगातार हालत खराब होती गई और सबका मिला-जुला असर कोरोना काल में राष्ट्रीय आपदा के रूप में सामने आया है। यदि केन्द्र सरकार रचनात्मक और सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखती तो देश को आज जैसे दिन नहीं देखने पड़ते। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने कोरोना काल में जो रचनात्मक नजरिया रखा उसके कारण हम किसानों, मजदूरों, गरीबों, ग्रामीणों, वन आश्रितों को 70 हजार करोड़ रू. की आर्थिक मदद कर पाए। उन्होंने कहा कि मुझे दुख होता है कि इस संकट काल में भी हमारे उन पुरखों के योगदान को भुलाने की कोशिश की जाती है, जिन्होंने देश को अपनी सही सोच और सही नेतृत्व से स्वावलंबी बनाया था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जब देश स्वतंत्र हुआ उस समय देश में कृषि एवं कृषकों की स्थिति अत्यंत खराब थी। भुखमरी की स्थिति में खड़े देश को आत्मनिर्भर बनाने अभियान चलाया गया। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 लागू किया, जिससे जमाखोरी एवं कालाबाजारी पर रोक लगी। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के समय प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने के लिए कृषि मूल्य आयोग गठित किया गया। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत की परंपरागत कृषि को ‘‘हरित क्रांति’’ में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने कृषकों के लिए बैंक के द्वार खोलने के लिए बैंको का राष्ट्रीयकरण किया।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर 1970 के दशक में एग्रीकल्चर प्रोडयूस मार्कटिंग (रेगुलेशन) ऐक्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके तहत किसानों को उनके उत्पादों का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए कृषि विपणन समितियां बनी थी। इन समितियों का उद्देश्य बाजार की अनिश्चितताओं सेे किसानों को बचाना और उनका शोषण रोकना था। इस एक्ट के द्वारा मंडी समितियों का गठन किया गया। इन मंडियों में कृषकों को उनकी उपज का सही मूल्य मिलता है। कृषक अपना प्रतिनिधि चुनते हैं, जो मंडी समिति का प्रबंधन करते हैं।