इंफाल: मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के चार दिन बाद, केंद्र सरकार ने गुरुवार को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला किया। इसके साथ ही राज्य विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब राज्य मई 2023 से जातीय हिंसा से प्रभावित रहा है।
कैसे हुआ राजनीतिक संकट?
- 9 फरवरी को बीजेपी सरकार गिर गई, जब मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
- इससे पहले, कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दी थी।
- बीजेपी और एनडीए के सहयोगी दलों के बीच नए मुख्यमंत्री के चयन को लेकर सहमति नहीं बन पाई, जिसके बाद केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया।
राष्ट्रपति शासन की आधिकारिक घोषणा
गुरुवार शाम को केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल की रिपोर्ट और अन्य सूचनाओं पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया।
अधिसूचना में कहा गया:
- राष्ट्रपति ने राज्य सरकार के सभी कार्य और शक्तियां अपने अधीन ले ली हैं।
- राज्य विधानसभा की सभी शक्तियां संसद के अधिकार क्षेत्र में आ गई हैं।
मणिपुर में सत्ता संतुलन
- मणिपुर विधानसभा में 60 सीटें हैं, लेकिन एक विधायक की मृत्यु के बाद मौजूदा संख्या 59 रह गई।
- इनमें 37 विधायक बीजेपी के थे, जबकि अन्य दलों में 6 NPP, 5 NPF, 5 कांग्रेस, 2 कुकी पीपुल्स अलायंस, 1 JDU और 3 निर्दलीय विधायक शामिल थे।
- हिंसा के कारण NPP और KPA ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार कमजोर पड़ गई।
राष्ट्रपति शासन के पीछे संभावित कारण
- बीजेपी और सहयोगी दल नए मुख्यमंत्री पर सहमति नहीं बना सके।
- सुरक्षा एजेंसियां राज्य में हिंसा के बीच बड़े पैमाने पर अभियान चलाना चाहती हैं, जिसके लिए राष्ट्रपति शासन को सही विकल्प माना जा रहा है।
- केंद्र सरकार अब राज्य में सशस्त्र समूहों पर कड़ी कार्रवाई कर सकती है।
राजनीतिक अस्थिरता के बीच मणिपुर के लोगों की नजर अब केंद्र सरकार के अगले कदमों पर टिकी है।
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