नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच आपसी खींचतान ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ऐतिहासिक जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के मुखपत्र ‘सामना’ में छपे संपादकीय में इस बात पर सवाल उठाया गया कि जब विपक्षी दल आपस में ही लड़ते रहें, तो फिर गठबंधन बनाने की जरूरत ही क्या है?
दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी ने 48 सीटें जीतकर अरविंद केजरीवाल की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया, जबकि AAP सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस की स्थिति लगातार तीसरी बार खराब रही और उसे एक भी सीट नहीं मिली।
AAP और कांग्रेस की लड़ाई ने बीजेपी को आसान जीत दिलाई
‘सामना’ में प्रकाशित संपादकीय में लिखा गया—
“दिल्ली में AAP और कांग्रेस ने एक-दूसरे को हराने के लिए लड़ाई लड़ी, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के लिए चीजें आसान हो गईं। अगर यही हाल रहा, तो गठबंधन बनाने का कोई मतलब नहीं रह जाता। विपक्षी दल आपस में ही लड़ते रहें!”
चुनाव प्रचार के दौरान भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच जमकर बयानबाजी हुई थी। इसका फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिला, जिसने चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया।
महाराष्ट्र में भी दोहराई गई दिल्ली जैसी गलती
शिवसेना (UBT) ने विपक्षी दलों की आंतरिक कलह को लेकर महाराष्ट्र की स्थिति पर भी चिंता जताई। संपादकीय में कहा गया कि दिल्ली की तरह महाराष्ट्र में भी विपक्षी दलों की आपसी फूट का फायदा बीजेपी गठबंधन को मिला, जिसने 2024 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की।
‘सामना’ ने यह भी आरोप लगाया कि हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के दौरान कांग्रेस के अंदर कुछ नेताओं ने राहुल गांधी के नेतृत्व को कमजोर करने की कोशिश की। इससे बीजेपी को वहां भी बढ़त मिल गई।
ओमर अब्दुल्ला का तंज और अन्ना हज़ारे पर सवाल
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी AAP और कांग्रेस की हार पर तंज कसा। उन्होंने X पर पोस्ट करते हुए लिखा—
“और लड़ो आपस में!!!” (Keep on fighting each other).”
इसके अलावा, ‘सामना’ ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे पर भी निशाना साधा। संपादकीय में कहा गया कि अन्ना हज़ारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम ने ही कभी अरविंद केजरीवाल को राजनीति में लाने का रास्ता बनाया था। लेकिन अब वे केजरीवाल पर तो सवाल उठा रहे हैं, मगर मोदी सरकार के तहत हुए भ्रष्टाचारों पर चुप्पी साधे हुए हैं।
“हज़ारे ने मोदी सरकार के तहत हुए घोटालों जैसे कि राफेल डील और अदानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आरोपों पर कुछ नहीं कहा। मोदी का ‘अमृतकाल’ सिर्फ धोखे और भ्रष्टाचार पर टिका हुआ है।”
विपक्ष की असहमति ने लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया
संपादकीय में कहा गया कि दिल्ली चुनाव में हार ने देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित किया। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस के नेताओं ने सीट-बंटवारे की बातचीत को आखिर तक खींचा, जिससे जनता के बीच विपक्ष की छवि कमजोर हुई।
अंत में ‘सामना’ ने व्यंग्यात्मक लहजे में लिखा—
“अगर यही सब चलता रहा, तो गठबंधन बनाने की जरूरत ही क्या है? विपक्षी दल आपस में ही लड़ते रहें और सत्ता बीजेपी को सौंप दें। अगर किसी को दिल्ली चुनावों से सबक नहीं लेना है, तो वे सीधे तौर पर तानाशाही को बढ़ावा देने का श्रेय ले सकते हैं।”
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