छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और तीन सदस्यों की सेवाएं समाप्त करने के राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया।
यह मामला डब्ल्यूपीसी नंबर 206/2024 के तहत दर्ज था, जिसमें 15 दिसंबर 2023 को सरकार द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश के तहत अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह और सदस्य गणेश ध्रुव, अमृत लाल टोप्पो, और अर्चना पोर्टे को उनके पदों से हटा दिया गया था।
जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने 29 जनवरी 2025 को इस मामले में अपना सुरक्षित फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ताओं की याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट का तर्क:
सिंगल बेंच ने कहा, “सरकार के अधीन खुशी के सिद्धांत के तहत नियुक्त पदाधिकारी को कभी भी, बिना कारण बताए, और बिना किसी नोटिस के हटाया जा सकता है।”
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग (संशोधन) अधिनियम, 2020 की धारा 4(3) के तहत हटाने के लिए सुनवाई का मौका देना अनिवार्य है। उन्होंने आरोप लगाया कि 2023 के राज्य चुनावों के बाद राजनीतिक कारणों से उनके खिलाफ कार्रवाई की गई।
सरकार का पक्ष:
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आर.एस. मार्हस ने कहा कि अधिनियम की धारा 4(1) के अनुसार अध्यक्ष और सदस्य “राज्य सरकार की खुशी के दौरान” कार्य करते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि हटाने का आदेश केवल सरकार की खुशी की वापसी का मामला था और इसमें धारा 4(3) की प्रक्रिया का पालन आवश्यक नहीं था।
कोर्ट का फैसला:
जस्टिस गुरु ने सरकार के तर्कों से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि धारा 4(1) स्पष्ट रूप से बताती है कि नियुक्तियां “सरकार की खुशी के दौरान” होती हैं और हटाने का आदेश किसी भी प्रकार का कलंक नहीं लगाता।
फैसले में यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ताओं का हटाया जाना वैध था क्योंकि उनकी विचारधारा वर्तमान सरकार की नीतियों से मेल नहीं खाती।