छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने ईसाई व्यक्ति को गांव में पिता की दफन की अनुमति देने की याचिका खारिज की

बिलासपुर, 11 जनवरी – छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक ईसाई व्यक्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपने पिता को अपने पैतृक गांव में दफनाने की अनुमति मांगी थी। जस्टिस बिभु दत्ता गुरु ने कहा कि गांव में ईसाई समुदाय के लिए अलग से कब्रिस्तान नहीं होने के कारण यह दफन विवाद और असामंजस्य का कारण बन सकता है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के गांव के पास 20-25 किलोमीटर की दूरी पर एक अलग कब्रिस्तान उपलब्ध है, जहां ईसाई समुदाय के लोग अपने परिजनों को दफना सकते हैं।

याचिकाकर्ता रमेश बघेल ने अपनी याचिका में कहा था कि उनके गांव छिंदावाड़ा में एक कब्रिस्तान है, जिसे ग्राम पंचायत द्वारा अनौपचारिक रूप से विभिन्न समुदायों के लिए आवंटित किया गया है। इसमें ईसाई समुदाय के लिए भी अलग क्षेत्र निर्धारित है। उन्होंने यह भी बताया कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस कब्रिस्तान के ईसाई हिस्से में दफनाया गया था।

हालांकि, गांव के कुछ लोगों ने उनके पिता के दफनाने का विरोध किया और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। उन्होंने याचिकाकर्ता के परिवार को उनकी निजी भूमि पर भी दफन करने से रोका, यह दावा करते हुए कि गांव में किसी भी ईसाई व्यक्ति को कहीं भी दफन नहीं किया जा सकता।

राज्य की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि छिंदावाड़ा में ईसाई समुदाय के लिए कोई अलग कब्रिस्तान नहीं है। हालांकि, अगर याचिकाकर्ता अपने पिता के अंतिम संस्कार को अपने मूल रीति-रिवाजों के अनुसार करना चाहते हैं, तो उन्हें पास के गांव करकापाल में, जहां ईसाई समुदाय के लिए एक अलग कब्रिस्तान है, अंतिम संस्कार की अनुमति दी जा सकती है।

कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताते हुए याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता किशोर नारायण ने पैरवी की, जबकि राज्य की ओर से उप महाधिवक्ता प्रवीण दास और हस्तक्षेपकर्ता की ओर से अधिवक्ता रोहित शर्मा पेश हुए।

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