द्रमुक नेता ए. राजा सनातन धर्म के खिलाफ लगातार विवादित बयान देकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। इसलिए जब हमारी चुनाव यात्रा तमिलनाडु के दौरे पर पहुँची तो हमने समय निकाल कर नीलगिरी संसदीय क्षेत्र का दौरा कर यह जानने का प्रयास किया कि वहां पर राजा के सनातन धर्म विरोधी बयानों का कितना असर है। हम आपको बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा आठवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार और केंद्रीय राज्य मंत्री एल. मुरुगन से है। प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर इस क्षेत्र में 19 अप्रैल को मतदान संपन्न हुआ। यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस बार राजा, मुरुगन और एआईएडीएमके के लोकेश तमिलसेल्वन और नाम तमिलर काची के ए. जयकुमार के बीच चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिला।
हम आपको बता दें कि ए. राजा यहां से 2014 में लोकसभा चुनाव हार गये थे। उस समय उनके खिलाफ 2जी घोटाले का मामला बेहद गरम था। हालांकि राजा ने 2019 में इस सीट पर फिर से जीत हासिल करते हुए अन्नाद्रमुक के उम्मीदवार एम त्यागराजन को 2,00,000 के अधिक मतों के अंतर से हरा दिया था। इस निर्वाचन क्षेत्र की खास बात यह है कि यहां 25 लाख श्रीलंकाई प्रवासी भी हैं, जिन्हें भारतीय मूल के पहाड़ी तमिल कहा जाता है। चुनावों में जीत के लिए इस वर्ग का समर्थन बहुत जरूरी है।
नीलगिरी में जब हमने लोगों से बातचीत की तो सबसे बड़ी समस्या मानव और पशुओं के बीच होने वाले संघर्ष के रूप में दिखी। यहां हाथियों के आवागमन से कई तरह की समस्याएं होती हैं। सरकार का दावा है कि रेडियो कॉलर तकनीक से हाथियों पर लगातार निगरानी रखी जाती है लेकिन लोगों ने बताया कि हाथी कई बार उत्पात भी मचाते हैं। इसके अलावा हाथी गलियारे के किनारे अतिक्रमण और अवैध रिसॉर्ट्स होने की बात भी सामने आई। नीलगिरी में हमें बुनियादी ढांचा भी खराब स्थिति में नजर आया। मानव और पशु अपशिष्ट के चलते जल प्रदूषण भी यहां की समस्या है। लोगों ने सीवेज की स्थिति भी सही नहीं होने की जानकारी दी।
नीलगिरी में पर्यटन तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि इसके अंतर्गत आने वाले ऊटी और कुन्नूर में बड़ी संख्या में पर्यटक आ रहे हैं। इसके चलते यहां कम बजट वाले होटलों की बाढ़ आ गयी है। होटलों और पर्यटकों की ओर से छोड़े जाने वाले ठोस कचरे के चलते पर्यावरण संबंधी चिंताएं बढ़ रही हैं। स्थानीय लोग इस बात से खुश नहीं दिखे कि पर्यटक आकर उनके शहर को गंदा कर रहे हैं। उनका कहना था कि ना तो सरकार सफाई की ओर ध्यान दे रही है ना ही पर्यटक साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं।
यहां व्यापारियों से बात करने पर उन्होंने बताया कि जीएसटी सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस सभी वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी की एक दर लागू करने और द्रमुक जीएसटी को पूरी तरह से समाप्त करने का वादा कर भाजपा पर बढ़त बनाती दिखी। वहीं युवाओं ने नौकरियों की कमी पर चिंता जताई। इस सीट पर हमें द्रमुक को बढ़त दिखी और यह भी महसूस हुआ कि भाजपा यहां अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब होगी क्योंकि उसने चुनाव पूरी मजबूती के साथ लड़ा है। भाजपा यहां जितनी मजबूत होगी उतना ही अन्य क्षेत्रीय दल कमजोर होंगे।
नीलगिरी में हमने लोगों से बातचीत में पाया कि सनातन धर्म विरोधी बयानों के चलते ए. राजा से कई लोग नाराज दिखे। साथ ही 2जी विवाद भी राजा का पीछा नहीं छोड़ रहा है। भाजपा उम्मीदवार मुरुगन तो प्रचार के दौरान इस चुनाव को 2जी और मोदीजी के बीच लड़ाई बताते रहे। अन्नाद्रमुक भी राजा पर निशाना साधती रही। पार्टी के महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी ने दावा किया है कि राजा जल्द ही जेल में हो सकते हैं। हम आपको बता दें कि भाजपा के मास्टर मथन इस सीट पर 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल कर चुके हैं। हालांकि वह जीत एक बार द्रमुक और एक बार अन्नाद्रमुक के साथ भाजपा के गठबंधन होने के चलते मिली थी। इस बार भाजपा ने जिस मजबूती के साथ चुनाव लड़ा है उससे यही प्रतीत हुआ कि यदि वह नहीं जीत पाई तो भी अन्नाद्रमुक को धकेल कर दूसरा स्थान हासिल कर सकती है।
मुरुगन ने हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में लगातार एक मजबूत समर्थन नेटवर्क तैयार किया है और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की उपलब्धियों पर जोर देते हुए सक्रिय रूप से अभियान चलाया। वह “हिंदू विरोधी बयानबाजी” के लिए राजा के मुखर आलोचक रहे हैं और उन्होंने पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसर पैदा करने का वादा किया है। भाजपा की नजर यहां के बडागास समुदाय पर थी जोकि यहां की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है। इसके अलावा भाजपा ने यहां वन क्षेत्र के किनारे रहने वाले 7,000 परिवारों के वोटों को भी आकर्षित किया। आप जान कर हैरान रह जाएंगे कि इन परिवारों के पास बिजली नहीं है। भाजपा ने जीतने पर उन्हें बिजली कनेक्शन देने का वादा किया है। भगवा पार्टी इस निर्वाचन क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से केवल दो में मजबूत है। लेकिन, 2019 की तुलना में देखें तो वह बेहतर नजर आई।
भाजपा की पूर्व सहयोगी अन्नाद्रमुक ने लोकेश तमिलसेल्वन को यहां से मैदान में उतारा है। लेकिन उन्हें यहां ज्यादा लोग जानते ही नहीं हैं। 2019 में अन्नाद्रमुक ने नीलगिरी में 34 प्रतिशत वोट हासिल किया था। यदि यह वोट इस बार भाजपा को गया तो इस क्षेत्र में स्थिति बदल सकती है। दूसरी ओर, नाम तमिलर काची के उम्मीदवार जयकुमार भी सिर्फ वोट काटते नजर आये। हमें ऐसा भी महसूस हुआ कि इस बहुकोणीय लड़ाई के कारण DMK का मुख्य मतदाता आधार विभाजित हो सकता है और इससे अंततः भाजपा को फायदा हो सकता है।