वसुंधरा सम्मान : पत्रकार सुधीर सक्सेना को सम्मानित कर सीएम बघेल ने कहा पढ़ना जरूरी है, इससे ही आप मूलस्त्रोत पहुंच सकते है

रायपुर (छत्तीसगढ़)। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि पढ़ना बहुत जरूरी है। इससे ही आप मूल स्रोत तक पहुंच सकते हैं। सत्य को परखना आसान काम नहीं है। सत्य की बारीकी में जाएंगे तो पाएंगे कि आज जो सत्य के नाम पर बात बताई जा रही है वो सही नहीं है। आज वसुंधरा सम्मान से सुधीर जी का सम्मान किया गया है। राजेश बादल जी को भी इस अवसर पर सुना है।आज इस जगह में पत्रकार भी हैं, साहित्यकार भी हैं। इतिहासकार भी हैं।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज यहाँ अपने निवास में स्वर्गीय देवीप्रसाद चौबे की स्मृति में आयोजित वसुंधरा सम्मान समारोह में शामिल हुए। उन्होंने लोकजागरण के लिए वरिष्ठ पत्रकार-लेखक सुधीर सक्सेना को प्रशस्ति पत्र, शाल और श्रीफल भेंट कर वसुंधरा सम्मान से सम्मानित किया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा शब्दों को संजोना एक कठिन विधा है। उसमें भावनाएं पिरोना और भी कठिन है। छत्तीसगढ़ी समाज बहुत सरल सहज है लेकिन यह सहजता आसान नहीं है।

कबीर और घासीदास जी ने भी यही बात कही है। देवी प्रसाद चौबे जी ने बहुत सरल जीवन जिया है। यह छत्तीसगढ़िया भोलापन है जो एक बार आता है उसे जोड़ लेता है। सबका इस धरती से अपनापन हो जाती है। ये हमारी पूंजी है।

उन्होंने कहा अहिंसा की पराकाष्ठा महात्मा गांधी में दिखती है। आलोचना को सहने की शक्ति उन्हें थी। हत्या भी हुई तो भी उन्होंने हे राम कहा। सोशल मीडिया में आपसे असहमति हो रही है फिर भी आप उग्र नहीं होते तो समझिए आप महात्मा गांधी के रास्ते पर हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुधीर सक्सेना जी को बधाई देते हुए कहा, जो स्वांतःसुखाय और जनहित में लिखते हैं। उन्हें नियमित लिखना चाहिए ताकि सत्य निरंतर लोगों तक पहुंचे। यह आपकी जिम्मेदारी है।

इस मौके पर वसुंधरा सम्मान से सम्मानित पत्रकार सुधीर सक्सेना कहा किसी भी पुरस्कार की महत्ता का आकलन इस बात से होता है कि वो निरंतरता रचती है या नहीं। इसका निर्धारण इस बात से भी होता है कि यह पुरस्कार किन लोगों को पूर्व में सम्मानित किया जा चुका है। इस दृष्टि से यह पुरस्कार मेरे लिए संतोष का विषय है।
पुश्किन का कहना है कि कोई भी सम्मान कवि के हृदय में होता है। मेरे लिए यह मेरे सरोकारों का सम्मान है। छत्तीसगढ़ में मुझे जो प्रेम मिला है। वो अद्वितीय है। जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए, यह छत्तीसगढ़ की खासियत है।

उन्होंने बताया 1978 में पहली बार यहां आया, तभी से हर साल यहां आता हूँ। इसने मुझे मोहपाश में बांध लिया है। यहां की आबोहवा से प्रभावित होकर गुरुदेव रवींद्रनाथ आये थे। कालिदास का मेघदूतम यहीं रचा गया। मैं जब भी यहां आता हूँ तो लगता है मैं घर लौटा हूँ। उन्होंने कहा इस सम्मान से बड़ी जिम्मेदारी भी आई है। निरंतर सरोकारों से जुड़े रहने की जिम्मेदारी है।