घरेलू हिंसा के लिए पीडि़त का पत्नी होना जरुरी नहीं, कोर्ट

घरेलू हिंसा के एक मामले में सेशन कोर्ट ने कहा है कि इसके लिए पीडि़त का पत्नी होना जरुरी नहीं है। यह टिप्पणी जिला न्यायालय में विचाराधीन घरेलू हिंसा के प्रकरण को निरस्त किए जाने संबंधी दाखिल अपील पर विचारण पश्चात कोर्ट ने की है। अपील पर सुनवाई प्रथम अपर सत्र न्यायालय के प्रथम अतिरिक्त न्यायाधीश विवेक कुमार तिवारी की अदालत में की गई थी। इस मामले में पीडि़ता के बिलासपुर निवासी ससुराल पक्ष के खिलाफ पुलिस ने महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर न्यायालय में विचारण के लिए प्रस्तुत किया है। प्रकरण न्यायायिक मजिस्टे्रट प्रथम श्रेणी प्रतिक्षा शर्मा की अदालत में विचाराधीन है।

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। भिलाई वैशाली नगर निवासी कशिश माखिजा (29 वर्ष) ने पुलिस में अपने पति आकाश माखिजा सहित ससुराल पक्ष के लोगों पर उसे प्रताडि़त किए जाने की शिकायत पुलिस में की थी। इस शिकायत पर जांच के बाद पुलिस ने कशिश के पति के अलावा उसके परिवार के सदस्य सुनीता माखिजा, (45 वर्ष), निर्मला माखिजा (65 वर्ष), दिलीप निभानी (43 वर्ष) के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत घरेलू हिंसा का अपराध पंजीबद्ध किया था। प्रकरण को विचारण के लिए न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। प्रकरण जेएमएफसी मजिस्टे्रट प्रतीक्षा शर्मा की अदालत में विचाराधीन है।
इस प्रकरण पर आपत्ति करते हुए आरोपी पक्ष के अधिवक्ताओं द्वारा अपील दाखिल की गई थी। अपील आवेदन को सुनवाई पश्चात 30 अप्रैल को जेएमएफसी मजिस्टे्रट बरखा रानी की अदालत ने खारिज कर दिया था। जिस निर्णय को चुनौती देते हुए अपील जिला सत्र न्यायालय में की गई थी। इस अपील पर न्यायाधीश विवेक कुमार तिवारी की अदालत में सुनवाई की गई। आरोपी पक्ष के अधिवक्ताओं ने दलील दी थी कि शिकायतकर्ता कशिश आरोपी आकाश की वैध पत्नी नहीं है। कशिश ने पूर्व पति के जीवित होने और उससे विधिवत विवाह विच्छेद किए बिना आकाश से विवाह किया। जिसके कारण कशिश आकाश की वैध पत्नी नहीं है। अपील में यह तर्क भी दिया गया कि आकाश की पत्नी सुरभि श्यामनानी के आकस्मिक निधन 26 जनवरी 2015 को हो गया था, जिसके बाद कशिश के परिजनों ने उसका पूर्व पति से तलाक हो जाने का हवाला देते हुए आकाश के साथ शादी करा दी थी। जिसके कारण यह विवाह शून्य है। इस आधार पर घरेलू हिंसा के इस आपराधिक प्रकरण को निरस्त किए जाने की अपील की गई थी।
इस अपील पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि यह स्वीकृत तथ्य है कि दोनों का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह हुआ था और दोनों पति-पत्नी के रुप में साथ रह रहे थे। विचारण न्यायालय द्वारा आदेश में व्यथित व्यक्ति की परिभाषा का उल्लेख भी किया गया है। महिलाओं का संरक्षण अधिनियम में व्यथित व्यक्ति की परिभाषा में वैध पत्नी शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, बल्कि ऐसी कोई भी महिला जो घरेलू नातेदारी में रह रही हो या घरेलू हिंसा का शिकार हो का उल्लेख है। इसका तात्पर्य यह है कि इस अधिनियम की मंशा केवल वैध पत्नी के रुप में रहने वाली महिला को संरक्षण प्रदान करने की नहीं, वरन किसी पुरुष के साथ रह रही अन्य महिलाओं को भी लाभ प्रदान करना है। इस प्रकरण में आवेदिका का अनावेदक के साथ विवाह कर साथ रहना प्रमाणित है। अत: वह व्यथित महिला की परिभाषा में आती है। अत: उनके विवाह को वैध होने अथवा अवैध होने का लाभ नहीं दिया जा सकता। प्रथम दृष्ट्या आवेदिका के अभिवचनों एवं उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि अपीलार्थीगण द्वारा घरेलू हिंसा नहीं की गई है। निचली अदालत द्वारा अपील को निरस्त किए जाने की विधिसम्मत करार देते हुए सेशन कोर्ट ने इस निर्णय के विरुद्ध की गई अपील को सारहीन मानते हुए खारिज कर दिया है।