रायपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ में पानी से 7700 मेगावाट बिजली बनाने की नई तकनीक पर काम शुरू हुआ है। यह पंप स्टोरेज हाइडल इलेक्ट्रिक प्लांट है। इसके लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट-DPR बनाने का काम केंद्र सरकार के उपक्रम वॉटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेस – WAPCOS को दिया गया है। छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जनरेशन कंपनी और WAPCOS ने इसके लिये समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।
पावर कंपनी के रायपुर में डगनिया स्थित मुख्यालय में चेयरमेन अंकित आनंद और प्रबंध निदेशक एनके बिजौरा की मौजूदगी में VAPCOS के सीनियर एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर अमिताभ त्रिपाठी और पावर कंपनी के मुख्य अभियंता एचएन कोसरिया ने करार पर हस्ताक्षर किये हैं। अंकित आनंद ने कहा, भविष्य में बिजली की आवश्यकता को देखते हुए यह तकनीक बेहतर साबित होगी। ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ में काफी संभावनाएं हैं। WAPCOS इसकी संभावनाओं पर रिपोर्ट देगी।
पावर कंपनी प्रबंध निदेशक एनके बिजौरा ने बताया, प्रदेश के पांच स्थानों को पंप स्टोरेज जल विद्युत परियोजना के लिए चिह्नित किया गया है। इसमें हसदेव बांगो कोरबा और सिकासेर जलाशय गरियाबंद में 1200-1200 मेगावाट की परियोजना संभावित है। जशपुर के डांगरी में 1400 मेगावाट व रौनी में 2100 मेगावाट तथा बलरामपुर के कोटपल्ली में 1800 मेगावाट बिजली उत्पादन होने की संभावना है। इसकी फिजिबिलिटी रिपोर्ट व डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) बनाने का कार्य WAPCOS करेगी। पंप स्टोरेज जल विद्युत परियोजनाओं की स्थापना हेतु सर्वे, अनुसंधान, स्थल चयन, चिन्हांकन व विकास के लिए छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जनरेशन कंपनी को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
बिजली कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि इसका DPR बनने में दो साल का समय लग जाएगा। इसके बाद परियोजना के लिए टेंडर आदि की प्रक्रिया शुरू होगी। संभावना जताई जा रही है कि इस परियोजना से 2029-30 तक बिजली का उत्पादन होने लगेगा। सरकार ने जो नीति मंजूर की है, उसमें 10 हजार मेगावाट उत्पादन की बात कही गई है। फिलहाल 7700 मेगावाट की परियोजनाओं के लिए DPR बनाया जाना है।
छत्तीसगढ़ में राज्य जल विद्युत परियोजना (पंप स्टोरेज आधारित) स्थापना नीति 2022 बनी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में 6 सितम्बर को हुई कैबिनेट की बैठक में इस नीति को मंजूरी दी गई थी। उस समय कहा गया था, इस तरह की परियोजना लगने से जलाशयों के पानी से बड़ी मात्रा में बिजली बनाई जा सकेगी। इसकी कीमत कोयला आधारित ताप बिजली घरों से सस्ती होगी। वहीं इसके उपयोग से पर्यावरण को भी कम नुकसान होगा।
बताया जा रहा है, दिन के समय बिजली की मांग कम होती है। ऐसे में इसकी कीमत भी कम होती है। इसी समय इस परियोजना का पंप चलाकर पानी को निचले जलाशय से ऊपर वाले जलाशय में डाल दिया जाएगा। रात में बिजली की मांग अधिक होती है, वह महंगी भी होती है। उस समय ऊपर के जलाशय से टरबाइन पर पानी छोड़कर बिजली का उत्पादन किया जाएगा।