बाल विवाह, बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण, इसे समूल नष्ट करने में ही समाज की भलाई

दुर्ग (छत्तीसगढ़)। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में आज कचंदुर व छावनी ग्रामों में बाल विवाह पर जागरुकता शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में उपस्थित अति. जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वय रामजीवन देवांगन तथा अजीत कुमार राजभानू ने नागरिकों को बाल विवाह से होने वाली क्षति और इससे समाज पर पडऩे वालें दुष्प्रभाव से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि बाल विवाह बच्चों के अधिकारों की अतिक्रमण करता है और इसके समूल नाश में ही समाज की भलाई है।

बता दें कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष एवं जिला सत्र न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में विधिक सेवा योजना के तहत नागरिकों को प्रदान की जाने वाली सुविधाओं व सेवाओं की जानकारी देने विशेष जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। जिसके तहत यह शिविर आयोजित किए गए। शिविर में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के साथ बाल विवाह से हो रही परेशानियों के संबंध में जानकारी प्रदान की गई। शिविर में उपस्थित न्यायाधीश द्वय ने बताया कि बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। जिससे उन पर हिंसा शोषण तथा यौन शोषण का खतरा बना रहता है। बाल विवाह लड़कियों और लड़कों दोनों पर असर डालता है, लेकिन इसका प्रभाव लड़कियों पर अधिक पड़ता है। बाल विवाह बचपन खत्म कर देता है। बाल विवाह बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और संरक्षण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। बाल विवाह का सीधा असर ना केवल लड़कियों पर बल्कि उनके परिवार और सामुदाय पर भी होता है।
शिविर में न्यायाधीश द्वय ने बताया कि बाल विवाह समाज की जड़ों तक फैली बुराई लैंगिक असमानता और भेदभाव का ज्वलंत उदाहरण है। यह आर्थिक और सामाजिक ताकतों की परस्पर क्रिया.प्रतिक्रिया का परिणाम है। जिन समुदायों में बाल विवाह की प्रथा प्रचलित है वहां छोटी उम्र में लड़की की शादी करनाए उन समुदायों की सामाजिक प्रथा और दृष्टिकोण का हिस्सा है तथा यहां लड़कियों के मानवीय अधिकारों की निम्न दशा दर्शाता है। बाल विवाह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यहां पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को गरीबी की ओर धकेलता है। जिन लड़कियों और लड़कों की शादी का कम उम्र में कर दी जाती है उनके पास अपने परिवार की गरीबी दूर करने और देश के सामाजिक व आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए कौशल, ज्ञान और नौकरियां पाने की क्षमता कम होती है। जल्दी शादी करने से बच्चे भी जल्दी होते हैं और जीवन काल में बच्चों की संख्या भी ज्यादा होती है। जिससे घरेलू खर्च का बोझ बढ़ता है। बाल विवाह बंद करने के लिए बहुत से देशों में पर्याप्त निवेश की कमी का एक कारण यह भी है कि इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए वित्तीय तौर पर उचित तर्क नहीं दिए गए हैं। लड़कियों को लड़कों की तुलना में बराबर महत्व ना दिए जाने के कारण यह धारणा है कि लड़कियों की शादी करने के अलावा कोई अन्य वैकल्पिक भूमिका नहीं है। उनसे यहां उम्मीद की जाती है कि वे शादी की तैयारी के लिए घर के काम.काज करें और घरेलू जिम्मेदारी उठाएं। बाल विवाह एक कुप्रथा है यहां प्राचीन काल में प्रचलित थी। जब लड़के.लड़कियों का विवाह बहुत ही कम उम्र में कर दिया जाता था। बाल विवाह केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में होते रहे हैं। भारत सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, 1 नवंबर 2007 को लागू किया।
कम उम्र में शादी करना कानून जुर्म
उन्होंने बताया कि बाल विवाह अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है। साथ ही बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत 2 वर्ष के कठोर कारावास या एक लाख रुपए का जुर्माना या दोनों सजा से दंडित किया जा सकता है, किंतु किसी महिला को कारावास से दंडित नहीं किया जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत किए गए अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे। इस अधिनियम के अंतर्गत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है।