रायपुर (छत्तीसगढ़)। राज्य के लघु एवं सीमांत कृषक भी अब नवीनतम तकनीकी एवं नवीन व्यवसाय को अपनाना शुरू कर दिया है। राज्य के किसान नील क्रांति योजना के अंतर्गत मत्स्य आहार उत्पादन संयंत्र स्थापित कर फिश मीड फीड (मत्स्य आहार) का उत्पादन करने लगे हैं। इससे मत्स्यपालकों को स्थानीय स्तर पर ही उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन युक्त मत्स्य आहार की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है।
नील क्रांति योजना के अंतर्गत बीते वर्ष राज्य में कुल छह मत्स्य आहार उत्पादन संयंत्र स्थापित हुए, जिसमें चार छोटे और दो बड़े संयंत्र शामिल है। इस साल राज्य में इस योजना के तहत 10-10 लाख रूपए की लागत वाले 4 छोटे तथा 2-2 करोड़ रूपए की लागत वाले 2 बड़े मत्स्य आहार उत्पादन संयंत्र की स्थापना की जाएगी। राज्य में मत्स्य आहार उत्पादन से मत्स्य पालन को बढ़ावा मिलने के साथ ही इसकी लागत में भी कमी आई है। ज्ञातव्य है कि मत्स्य कृषकों को मत्स्य आहार प्रदेश के बाहर से मंगना पड़ता था, जिससे मत्स्य पालन की लागत भी अधिक आती थी।
बेमेतरा जिले के साजा ब्लाक के देऊरगांव के पुरूषोत्तम चौबे मछली पालन के साथ-साथ मत्स्य आहार का उत्पादन भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने नील क्रांति योजना की मदद से 10 लाख रूपए की लागत का मत्स्य आहार उत्पादन संयंत्र लगाया है। इस संयंत्र के स्थापना के लिए शासन से 5 लाख रूपए का अनुदान भी मिला था। श्री चौबे ने बताया कि मक्का, चोकर, कोढ़ा, सोयाखली और सरसों की खली को निर्धारित मात्रा में मिलाकर अच्छी क्वालिटी का प्रोटीन युक्त मत्स्य आहार के उत्पादन से उन्हें दुर्ग एवं बेमेतरा जिले के मछली पालन विभाग से 50-50 क्विंटल फिश मील फीड की सप्लाइ का ऑर्डर भी मिला है। उनके मत्स्य आहार उत्पादन संयंत्र की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 20 क्विंटल है। उन्होंने बताया कि एक क्विंटल मत्स्य आहार के निर्माण की लागत लगभग 1500-1700 रूपए आती है, जबकि बाजार मूल्य लगभग 2500 रूपए प्रति क्विंटल है। मत्स्य आहार उत्पादन से उन्हें अतिरिक्त आमदनी होने लगी है। श्री चौबे इससे पूर्व कवर्धा, मुंगेली, बेमेतरा और दुर्ग जिले के देवरी में 10-10 क्विंटल मत्स्य आहार की आपूर्ति कर चुके हैं। उनकी इच्छा मत्स्य आहार उत्पादन के लिए अब बॉयलर सिस्टम वाले संयंत्र की स्थापना की है, ताकि इसके जरिए व प्रोटीन सिंकिंग सीड फीड का उत्पादन कर सके।