पढाई के लिए बच्चों को डालनी पड रही जान जोखिम में, गले तक पानी में डूब कर जाते है स्कूल

जिला मुख्यालय से महज कुछ किलोमीटर दूर गांव में रहने वाले बच्चों को पढ़ाई करने के लिए जान जोखिम में डालनी पड रही है, लेकिन इस ओर न तो प्रशासन का ध्यान है और नहीं क्षेत्र के जनप्रतिनिधि नुमाइंदों का। गांव के 100 से अधिक बच्चों को पढने के लिए 6 किलोमीटर दूर जान हथेली पर रख कर जाना पड़ता है। फोर्थ नेशन (4 th NATION) के लिए रितेश तिवारी की एक्सक्लूसिव रपट….

दुर्ग (छत्तीसगढ़) । आजादी के 72 साल बाद भी अहिवारा विधानसभा क्षेत्र के ग्राम सेमरिया डी ग्राम पंचायत बागडुमर के बच्चे जान हथेली में लेकर जा रहे विद्यालय। गांव के 100 से अधिक बच्चे 6 किलोमीटर दूर नारधा गाँव पढ़ने जाते है। विद्यालय पहुचने के लिए बरसात के दिनों में गले तक पानी मे डूब कर जाते है शिक्षा ग्रहण करने। भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान भी कई बार शिकायतें हुई, सड़क पर पुल बनाने की मांग बच्चों ने की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। यह गांव प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह निवास से महज दस किलोमीटर की दूरी पर है।
पिछले 10 वर्षों से गाँव के स्कूली छात्र लगातार सड़क में छोटी सी पुल बनाने की मांग कर रहे है लेकिन इन छात्रो की सबसे जरूरत मंद मांग न जिला प्रशासन पूरी कर पाया न मंत्री न ही विधायक । दर्जनों बार से भी ज्यादा जिला प्रशासन समेत सीएम तक को अपनी पीड़ा लिखित में बता चुके है लेकिन कोई सुनने वाला नही और न ही कोई देखने वाला है। छोटे बड़े सभी छात्र गाँव सेमरिया डी से निकल कर इसी नाले से जान जोखिम में डाल कर विद्यालय की दहलीज पर हर रोज कदम रखते है। बरसात के दिनों में ये समस्या इतनी भयानक होती है कि छात्र छात्राओं को गले तक पानी मे डूब कर विद्यालय तक जाना पड़ता है और फिर पांच घंटे गीले कपड़े में ही कक्षा में पढ़ाई करना पड़ता है । जिले के कलेक्टर अक्सर ग्रामीण छेत्रो का दौरा करते है जिला शिक्षा अधिकारी समेत दर्जनों अधिकारी गाँव गाँव घूम कर ग्रामीणों की समस्या सुनने और त्वरित समाधान करने की अकसर बाते करते है लेकिन जमीनी हकीकत क्या है इस तस्वीर को देख कर अंदाजा लगा सकते है । शिक्षामंत्री भी आये दिन बेहतर शिक्षा पर जोर देते दिखाई देते है। ऐसी बदहाल वेवस्था से छात्र विद्यालय जाएंगे तो कैसे अपना भविष्य उज्जवल कर पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है।